सम्पूर्ण सृष्टि में मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जिसे सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है| मानव को सगुण परमात्मा परब्रह्म ने अपनी संतान के रूप में अपना स्वरूप प्रदान किया है| अतः मानव परमात्मा स्वरूप नही, परमात्मा का ही रूप है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल में मानव को सत-असत सगुण जीवात्मस्वरूप से पुनः परम सत्य विराट आत्मस्वरूप बनाने के लिए सगुण परब्रह्म द्वारा कर्मभूमि का सृजन किया गया|
कर्मभूमि पर मानव को अपना आत्मकल्याण करने के लिए, अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनना होता है| अतः मायावी सृष्टि में मानव को महामाया से मुक्त करवाने के लिए, मानव को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए, कर्मभूमि पर किसी न किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में ईश्वर का ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण होता है| ईश्वर उस कर्मयोगी को अपना प्रतिनिधि बनाकर कर्मभूमि पर धर्म की पुनः स्थापना व प्रभावना के कार्य करवाता है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार जब से सृष्टि का सृजन हुआ तब से अब तक भारत कर्मभूमि का आध्यात्मिक खण्ड रहा है| भारत की पावन भूमि पर जम्मू- कश्मीर को देवलोक माना गया है, क्योकि जम्मू-कश्मीर सुन्दर सृष्टि के रचियता परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म का पावन धाम है| इस देवभूमि पर युग परिवर्तनकारी माता वैष्णोदेवी व माता सीता के पावन धाम विद्यमान है| युग परिवर्तनकारी इन दोनों देवियों का सम्बन्ध हरि विष्णु से है, इसलिए हरि विष्णु के प्रमुख 10 अवतारों में दसवा व 24 अवतारों में आखरी अवतार प्रभु कल्कि का सम्बन्ध भी जम्मू-कश्मीर से रहा है|
दोस्तो वाग्वरांचल की पावन धरा पर वाग्वरांचल के विख्यात संत मावजी महाराज की भविष्यवाणी के अनुसार कल्कि अवतार का पूर्ण प्रमाण के साथ ज्ञानस्वरूप प्राकट्य हो चूका है, जिसके सामने विज्ञान भी नतमस्तक होगा| कर्मभूमि पर युगानुसार जाति-सम्प्रदाय, धर्मग्रन्थ, धार्मिक स्थल रहित सतयुगी विश्व धर्म की स्थापना भी वाग्वरांचल की पावन धरा पर हो चुकी है| कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए सतयुगी धर्म की प्रभावना जम्मू-कश्मीर से होगी|
21वी सदी में जम्मू-कश्मीर से कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर, मानव को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करवा देगा| मानव-मात्र विराट आत्मस्वरुपता में निर्गुण परमब्रह्म व जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है| कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देकर, मानव को कर्मभूमि पर सत्कर्म के बदले स्वर्ग-सुख और निष्काम कर्मयोगी बनने वाले कर्मयोगी को कर्मभूमि पर ही जन्म-मरण से मुक्ति दिला देगा| ज्ञात रहे स्वर्ग-नरक और मोक्ष इसी कर्मभूमि पर है, किसी को मरकर स्वर्ग और मोक्ष नहीं जाना पड़ेगा|
बतादे सतयुगी दुनिया में मनुष्यों की उम्र हजारो वर्ष हुआ करती है, सतयुगी दुनिया में मनुष्य मोहमाया के बंधन में नहीं पड़ते, देह के रिश्तो को नहीं मानते, क्योंकि सतयुग में मनुष्य विदेही भाव में निष्काम कर्मयोगी बनकर आत्मस्वरूपता में जीवनयापन करते है| सतयुग में मानव विराट आत्मस्वरूप बनकर जीवनयापन करता है, इसलिए उसके मन में देह के रिश्तो का और देह अभिमान का भाव पैदा नहीं होता| सतयुगी दुनिया में मनुष्यों को हजारो वर्ष लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन मिलता है, लंबी उम्र मिलने से बार-बार जन्म-मरण नहीं होता, अतः कर्मभूमि पर रहकर भी जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है| कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मिली मुक्ति को ही मोक्ष गति कहते है|
कर्भूममि पर अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान पर से पर्दा उठाना, मानव-मात्र को सृष्टि की महामाया से अवगत कराकर संसारी मोहमाया से मुक्त करवाना, कर्मभूमि पर देश-विदेश की सीमाएं मिटाना, मानव-मात्र को देवी-देवता तुल्य बनाकर उनका मानव जीवन सार्थक बनाना, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के बीच धर्म के नाम पर बने जाति-सम्प्रदायवाद को जड़ से मिटाना, मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन जैसे एक साधारण इन्सान के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो सकता है, किन्तु मेरे भीतर मेरे ह्रदय में विद्यमान उस दिव्य महाशक्ति के लिए कुछ भी नामुमकिन नही है, जिसने इस विशाल ब्रह्माण्ड व सृष्टि का सृजन कर सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव को बनाया| अतः युग परिवर्तन के इस महान कार्य को निराकार दिव्य शक्ति द्वारा कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पन्न किया जायेगा| कर्मभूमि पर युग परिवर्तन के इस महान ईश्वरीय कार्य को मानव तो क्या कोई देवी-देवता भी नहीं रोक सकते|
ज्ञात रहे आज का युग विकास का युग है कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए मानव धर्म की प्रभावना अनेक हाथों से होगी| मानव-मात्र को विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनना होगा| मानव के मन मे देहभाव ही तेरे-मेरे, जाति-संप्रदाय के भेदभाव पैदा करता है| अज्ञानतावश किया गया यही भेदभाव पाप कर्म बनकर मानव के जीवन में दुखो का कारण बन जाता है|
धर्म-संप्रदाय जाति विवाद का, कब तक साथ निभाओगे ?
धर्म के नाम पर अधर्मी बने, तो मिट्टी में मिल जाओगे|
कलयुग की करनी को छोड़ोगे, तभी तो सतयुग का सुख पाओगे|
अरे मरकर स्वर्ग-मोक्ष किसने देखा? कर्मो से बचकर कहाँ जाओगे ?
बतादे सभी धर्म ग्रंथो व विश्व विख्यात भविष्यवक्ताओ की भविष्यवाणी अनुसार वीरो की भूमि राजस्थान प्रान्त में लोढ़ी काशी के नाम से विख्यात जनजाति बहुल बांसवाडा-डूंगरपुर जिला वाग्वरांचल के नाम से विश्व विख्यात है| वाग्वरांचल की पावन धरा पर निष्कलंक, निराकार, ज्ञानस्वरूप प्रकट हुए, कल्कि अवतार जम्मू-कश्मीर से कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के बीच अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के उस रहस्यमय ज्ञान की प्रभावना करेगे, जिससे कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत हो जाएगी| जब सम्पूर्ण मानव जगत के लोग देवी-देवता तुल्य बन जायेगे तब कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के बीच धर्म के नाम पर बने जाति-संप्रदायवाद भी स्वतः ही मिट जायेगे|
दोस्तों कल्कि अवतार का सम्बन्ध देवभूमि जम्मू-कश्मीर से इसलिए जुडा है कि धर्म ग्रंथों के अनुसार सुन्दर सृष्टि के रचियता सृष्टि के सभी जीवों के जन्मदाता, पालनहार सगुण परमात्मा परब्रह्म का पावन धाम कर्मभूमि के आध्यात्मिक खंड भारत की पावन भूमि पर देव भूमि जम्मू-कश्मीर में विद्यमान है| परमात्मा परब्रह्म को मानव जगत के लोग बाबा अमरनाथ, शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से भी जानते है| धर्म ग्रंथो के अनुसार कल्कि अवतार की दो पत्नियाँ बताई गई है, माता सीता और माता वैष्णो देवी इन दोनों देवियों का परम धाम भी देवभूमि जम्मू-कश्मीर में है|
कल्कि अवतार की प्रथम पत्नी लक्ष्मी रूपा पद्मा है, जिसने त्रेता में धरती पर विष्णु रूपी राम के साथ सीता के रूप मे जन्म लिया था, किन्तु कलंकित होने के बाद अग्नि परीक्षा देने की बात आई तो माता सीता जम्मू में राम को त्यागकर धरती की गोद में समाहित हो गई| माता सीता ने सोचा धरती पर शक्ति रूपा नारी ही कलंकित क्यों नर क्यों नहीं ? अतः सीता माता ने मन ही मन प्रण ले लिया की, जब तक धरती पर नारी को सम्मान नहीं मिल जाता नर और नारी मे भेद नहीं मिट जाता, जब तक मेरे सर पर लगा कलंक नही मिट जाता, जब तक मैं निष्कलंक नही बन जाती, तब तक मैं वापस देवलोक नहीं जाऊँगी, इसी प्रण के साथ कर्मभूमि पर नारी उत्थान के लिए माता सीता धरती में समाहित हो गई|
त्रेतायुग में माता सीता का धरती में समाहित हो जाना, उपरोक्त घटना का सम्बन्ध हरि विष्णु के रामावतार से है| अतः कर्मभूमि पर युगानुसार हरि विष्णु के होने वाले कल्कि अवतार का सम्बन्ध भी लक्ष्मी रूपा माता सीता से है| मानव जगत के बीच ईश्वर किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में अवतरित होकर अपना स्वरूप रचते है और कर्मभूमि पर अपने कार्य को रहस्यमय तरीके से पूर्ण करते है|
जब मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन को कर्मभूमि पर सतयुगी धर्म की स्थापना करने की अंतःप्रेरणा मिलती है| तब 31 दिसम्बर 2016 सतयुगी धर्म की स्थापना आयोजन के मुख्य अतिथि लहेरी आश्रम के संत सुमेर सिंह जी को भी इस पावन अवसर पर अंतःप्रेरणा मिलती है, कर्मभूमि पर सतयुगी धर्म की स्थापना और प्रभावना करने के लिए निमित्त बने मुझ कल्कि साधक मोहन और मेरी अर्द्धांगिनी कैलाश देवी का हजारो धर्म प्रेमियो के बीच हस्त मिलाप करवाते है| संत मुझ कल्कि साधक से कहते है शक्ति के बिना कार्य कभी सफल नहीं होते| अतः आप अपनी शक्ति रूपा अर्द्धांगिनी के साथ रहकर अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में धर्म की स्थापना और प्रभावना के कार्य करे|
संत सुमेर सिंह जी ने मुझ कल्कि साधक के नाम के आगे मेरी अर्द्धांगिनी कैलाश देवी का नाम जोड़ते हुए, मुझ कल्कि साधक को अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में भागवद कैलाश मोहन के नाम से सुशोभित किया| इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी से जोड़कर हमें अर्द्धनारीश्वर स्वरूप बना दिया| मैंने अपनी अंतःप्रेरणानुसार सतयुगी धर्म की स्थापना करने से पूर्व नारी को प्रेरणा मानते हुए, नारी को सम्मान देने के लिए हजारो धर्म प्रेमियो के बीच अपनी अर्द्धांगिनी कैलाश देवी को माता शक्ति स्वरूप मानते हुए उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया, शक्ति रूपा अर्धांगिनी के साथ मिलकर सतयुगी धर्म की स्थापना की| इस प्रकार निष्कलंक प्रभु ने सतयुगी धर्म की स्थापना से पहले कल्कि साधक श्री भागवद कैलाश मोहन को निमित्त बनाकर सीता माता के प्रण को पूरा किया|
कर्मभूमि के आध्यात्मिक खंड भारत की पावन भूमि पर वीरो की भूमि राजस्थान प्रांत के बांसवाड़ा शहर में कल्कि ज्ञान सागर के रूप में कल्कि अवतार के प्राकटय होने की खबर मिडिया के माध्यम से पुरे देश में वाइरल हुई तो हरिद्वार के संत हरिशंकर ने दिल्ली के एक धार्मिक अनुष्ठान में यह बात महंत भगवानदास को बताई, इसके बाद माता सीता ने महंत के सपने में आकर महंत को निर्देश दिया की तुम बांसवाड़ा जाओ वहां के आध्यात्मिक इतिहास को जानो और उस कल्कि साधक को मेरे धाम पर लेकर आओ, जिसे निष्कलंकावतार ने युग परिवर्तन के लिए निमित्त बनाया है|
माता सीता की आज्ञा पाकर महंत भगवानदास हरिशंकर के साथ धर्म नगरी बांसवाड़ा शहर में आकर मुझ कल्कि साधक से संपर्क करते है, तीन दिन बांसवाडा प्रवास के दौरान उन्होंने वाग्वरांचल के आध्यात्मिक महत्त्व को जाना, इसके बाद मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन की कड़ी जम्मू-कश्मीर माता वनखंडी धाम से जुड़ गई| 23 अप्रेल 2018 को महंत भगवानदास द्वारा जम्मू-कश्मीर सहित पूरे विश्व में शांति बहाल करने के लिए, सर्वधर्म समाज के गणमान्य नागरिको के सानिध्य में जम्मू-कश्मीर में माता वन खंडी धाम पर कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म का विश्व धर्म ध्वज फहराया गया| इसके बाद 9 मार्च 2023 को महंत भगवानदास के सानिध्य में सर्वधर्म प्रेमी भक्तो द्वारा कल्कि ज्ञान सागर गुरुकुल का शिलान्यास व भूमि पूजन कार्य संपन्न हुआ|
देवभूमि जम्मू कश्मीर में निष्कलंकावतार की दूसरी पत्नी वैष्णोदेवी को माना गया है, जो तीन देवियो का स्वरूप है, इसलिए इसे त्रिकुटा और शक्ति रूप रमा भी कहते है| मान्यता है कालदोष के कारण धरती पर पाप बहुत बड़ गया था, तब ईश्वरीय अवतरण का समय नहीं था, अतः हरि विष्णु ने तीनों देवियो को बुलाकर उन तीनों देवियो को मिलाकर एक आत्म-शक्ति का सृजन किया और उसे वैष्णवी त्रिकुटा नाम दिया| भगवान विष्णु त्रिकुटा देवी से कहते है तुम धरती पर जाकर दुष्टो का संहार करो और भक्तो की रक्षा करो| मै जब धरती पर अवतरित होऊंगा तुमसे विवाह करूंगा|
अपने वादे के मुताबिक हरि विष्णु का रामावतार कर्मयोगी राम के हृदय मे होता है, मगर राम देवी वैष्णवी त्रिकुटा से मिलते नहीं है| वैष्णवी राम को अपना पति मानकर उन्हे पाने के लिए तपस्या कर रही होती है, तभी नारद उसे आकार बताते है कि भगवान विष्णु राम के रूप मे अवतरित हो चुके है| जब वैष्णवी को पता लगा की भगवान विष्णु धरती पर प्रकट होकर भी मुझ से नहीं मिले वो कठोर तप करने लगी, फिर भगवान राम प्रकट होकर उसे कहते है, वैष्णवी मै राम के रूप मे सीता का पति हूँ मेरी दो पत्नियाँ नहीं हो सकती, मेरा अगला अवतरण जो होगा वो कल्कि के नाम से जाना जाएगा, तब मै तुम से विवाह कर लूँगा| उपरोक्त वृतांत के अनुसार कल्कि अवतार की दूसरी पत्नी देवी वैष्णवी मानी जाती है जो जम्मू-कश्मीर कटरा मे बिराजमान है|
मेरी अंतःप्रेरणानुसार 21वी सदी युग परिवर्तन की संधिवेला का समय है, जिसे संगमयुग भी कहते है| युग परिवर्तन की संधिवेला में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए देवादि देव महादेव काल के भी काल महाकाल अर्धनारीश्वर बाबा अमरनाथ निष्कलंकावतार के रूप में कर्मभूमि पर मुझ कर्मयोगी कल्कि साधक के भीतर सगुण परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में अवतार स्वरूप अवतरित हो चुके है| मुझ कल्कि साधक के मस्तक पर आधे चाँद का होना इस बात का प्रमाण माना जा सकता है, इस बारे में नास्त्रेदमस ने भी अपनी भविष्यवाणी में बताया है, कि कर्मभूमि पर 20वी सदी में सागर के नाम वाले देश में जहाँ पर 5 नदियों का संगम होता है, वहां एक मसीहा का जन्म होगा, उसके दो बेटे और दो बेटिया होगी व उसके मस्तक पर आधा चाँद होगा|
मेरी अंतःप्रेरणानुसार कर्मभूमि पर 20वी सदी में जब मैं निष्काम कर्मयोगी बन गया तो सर्वप्रथम मुझ कल्कि साधक के जीवात्मा के भीतर सुन्दर सृष्टि के रचियता सृष्टि के सभी जीवो के जन्मदाता, पालनहार सगुण परब्रह्म का अवतरण हुआ, इसके बाद परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मा की अंतरात्मा में निर्गुण परमब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर के रूप में भव्य अवतरण हुआ| मुझ कल्कि साधक के ह्रदय में अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का रहस्यम ज्ञान प्रकट होना इस बात का प्रमाण माना जा सकता है|
मुझ कल्कि साधक का नश्वर तन एक रथ के समान है, जिस पर सगुण परब्रह्म कर्मयोगी अर्जुन रूपी जीवात्मस्वरूप में और परम गुरुवर ज्ञान के दाता निर्गुण परमब्रह्म कृष्ण रूपी आत्मस्वरूप में सवार है| ईश्वर रूपी निर्गुण परमब्रह्म व अवतार रूपी सगुण परब्रह्म का प्राकटय कर्मयोगी साधक के ह्रदय में होता है, बाहर नहीं| अतः ज्ञात रहे जो दिव्य महाशक्ति निष्कलंक, निराकार, निर्गुण स्वरूप में आत्मस्वरूप है, वही सगुण स्वरूप में जीवात्मस्वरूप है उस निराकार का प्रतिक शिवलिंग है| ईश्वर स्वरूप निर्गुण आत्मा व अवतार स्वरूप सगुण जीवात्मा दोनों निराकार स्वरूप में मानव के भौतिक शरीर के भीतर विद्यमान रहते है, उन्हें भौतिक दृष्टि से देखा नहीं जा सकता, तो भला कर्मभूमि पर मानव का नश्वर तन अवतार और ईश्वर कैसे बन सकता है? कल्कि ज्ञान सागर 21वी सदी में सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव-मात्र को ईश्वर व अवतारवाद जैसी धारणाओं से मुक्त करवा देगा|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यम ज्ञानानुसार मुझ कल्कि साधक के भीतर जीवात्मा में सगुण परब्रह्म का अवतरण होना मतलब कर्मभूमि पर शिव व शक्ति का अवतरण हो चूका है| माता सीता व माता वैष्णवी माता शक्ति के ही रूप है और ब्रह्मा, महेश, विष्णु शिव के स्वरूप है, अतः माता सीता व माता वैष्णवी माता शक्ति में समाहित हो जाएगी| इस प्रकार कर्मभूमि पर युग परिवर्तनकारी दोनों देवियों का प्रण पूरा हो जायेगा|
परम माता-पिता परमात्मा परब्रह्म यानी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप शिव-शक्ति और माता वैष्णवी व माता सीता ये सभी दैविक शक्तियाँ जम्मू-कश्मीर में विराजमान है| अतः युग परिवर्तन का सारा कार्य कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से जम्मू-कश्मीर से ही पूर्ण होगा| आने वाले समय में सम्पूर्ण मानव जगत के लिए जम्मू-कश्मीर कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म का पावन विश्व तीर्थ बनकर विश्व विख्यात होगा|
देवभूमि जम्मू-कश्मीर पर्यटन स्थल होने के कारण, सम्पूर्ण मानव जगत को आध्यात्मिक ज्ञान के साथ ही स्वर्ग सुख का आनंद भी देगा| अतः युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को युगानुसार अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा| धर्म के नाम पर जाति-संप्रदायवाद व रुढ़ीवादियों को त्यागकर, सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को अपनाकर ईश्वरीय कार्य में सहभागी बनना होगा| मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| मानव जगत के सत्कर्म ही कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर सकते है| अरे मरकर स्वर्ग किसने देखा? आओ आप और हम मिलकर अपनी धरती को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाते है| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|