एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है किन्तु एक ही ईश्वर के दो स्वरूप दो चरित्र है, जो निर्गुण स्वरूप में परम सत्य है उसने सगुण स्वरूप में एक होकर भी अनेक जीव-जीवात्माओ के रूप धारण किये हुए है| इस सृष्टि में मानव को अपने मायावी नश्वर भौतिक शरीर की दृष्टि से जो भी दिखाई दे रहा है, वो सब कुछ निर्गुण ईश्वर से प्रकट हुई महामाया है, जिसे हम माया जाल भी कह सकते है|
सृष्टि का छोटे से छोटा जीव सगुण परमात्मा परब्रह्म का मायावी रूप है| अतः मानव-मात्र को सगुण परमात्मा परब्रह्म के प्रति भक्ति-भाव रखते हुए सभी जीवो से प्रेम करना, यथाशक्ति सभी जीवो की सेवा करना मानव धर्म है| मानव जीवन कर्म प्रधान है जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है| सृष्टि के किसी भी जीव को त्रासदी देने से, किसी जीव की हिंसा करने से कोई रोके न रोके किन्तु प्रकृति उस इन्सान को कभी माफ़ नहीं करती, उस इन्सान को उसके द्वारा किये गये पाप कर्म की सजा जरुर मिलती है| क्योंकि सृष्टि के सभी जीवो को समान रूप से जीने का अधिकार है|
नारी को अध्यात्मिक ज्ञानानुसार जग जननी कहा जाता है, नारी का पहला स्वरूप माँ है, इसके बाद बहन, अर्धांगिनी व बेटी इन सभी रूप में नारी को प्यार का सागर कह सकते है| नारी हर रूप में पुरुष से प्रेम करती है पुरुष की सेवा करती है| अतः माँ शक्ति रूपा नारी पर अत्याचार करना महापाप है|
गौ माता समेत वो सभी दुधारू जीव भी माँ शक्ति स्वरूप है, जिनसे हमें आहार के लिए दूध, दही, घी, मख्खन मिलता है, जो जीव हमारी सेवा करते है उन जीवो की सेवा करना मानव का कर्तव्य है| जीव-मात्र की सेवा करने वाले इन्सान को, जीव-मात्र से प्रेम करने वाले इन्सान को, सबकी सेवा सबसे प्यार करने वाले इन्सान को कर्मभूमि पर सुखी जीवन मिलता है| किसी जीव को त्रासदी देने वाले इन्सान को कभी सुख शांति नहीं मिल सकती, उसे उसके तामसिक कर्मो की सजा जरुर मिलती है| सत्कर्मी बनो सुखी रहो|