||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||
युग परिवर्तन की संधिवेला संगम युग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए हम ईश्वरीय संदेशानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव धर्म का सत्य मार्ग बताने जा रहे है| ज्ञात रहे हम और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान का मकसद सम्पूर्ण मानव जगत को मानव धर्म का सत्य मार्ग बताना है किसी भी जाति, पंत, संत, संप्रदाय के लोगों के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं है| हम सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों का तहेदिल से सम्मान करते है| कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को धर्म के नाम पर असत्य रुढ़िवादियों का त्याग करना होगा|
ज्ञात रहे सम्पूर्ण मानव जगत के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है और मानव धर्म के लिए अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल और धर्म ग्रंथो की भी जरूरत नहीं है क्योंकि धर्म और ईश्वर ये दोनों मानव के भीतर हृदयस्त विधमान है| मानव के मन में दया और सेवा के भाव हृदय से ही जागृत हो सकते है क्योंकि ईश्वर हृदयस्त विधमान रहता है वो बाहर नहीं मिल सकता| कर्मभूमि पर मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर कर्मयोगी के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करते हुए, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सकता है| ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान प्रदान करा सकता है, मानव को आत्मकल्याण का मार्ग बता सकता है, किन्तु किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नहीं करा सकता| क्योंकि अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है| सुंदर सृष्टि के रचियता सपूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मओं के जन्मदातार पालनहार परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म का कर्मफल सिद्धांत अटल है जैसी करनी वैसी भरनी| कर्मभूमि पर कर्मयोगी कर्म करने के लिए स्वतंत्र है किन्तु कर्मफल पाने के लिए नहीं |
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर कर्मयोगी स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है जो अपने कर्मो द्वारा अपना भाग्य लिखता है| अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार कर्मयोगी के कर्मो का लेखा-जोखा ईश्वर के नहीं सगुण परब्रह्म द्वारा स्थापित नवग्रहों के अधीन होता है| कर्मभूमि पर कर्मयोगी का भला बुरा न तो ईश्वर करता है और नहीं प्रकृति-परमात्मा व नवग्रह करते है| ज्ञात रहे मानव के अच्छे बुरे कर्म ही मानव का भला बुरा करते है| अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि में वृष्टि भी सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के कर्मो के अनुसार होती है| जब कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बन जाते है, तब कर्मभूमि पर कलयुग का नाश होकर सतयुगी दुनिया का सृजन होता है और साथ ही सृष्टि में वृष्टि भी भरपूर होती है, चारो तरफ शांति ही शांति हरियाली ही हरियाली होती है मानव का जीवन भी निरोगी होता है एवं सभी मनुष्यो को धरती पर ही स्वर्ग सुख का आनंद मिलता है| ठीक इसके विपरीत कर्मभूमि पर अगर लोगो में तामसिक प्रवृर्तियाँ बढ़ जाती है तो धर्म के प्रति ग्लानि भी बड़ने लगती है और धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाने के कारण अकाल पड़ता है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को भोजन पानी के लिए भी तरसना पड़ता है अनेक प्रकार की बीमारियों के कारण मनुष्यों का जीवन नरक तुल्य बन जाता है|
कर्मभूमि पर मानव के सत्कर्म ही मानव को उसके जीवन में सुख, शांति, वैभव, समृद्धि प्रदान करा सकते है और तामसिक कर्म मानव जीवन को तत्रासदियों से भर देते है इसी के साथ सत्कर्म से मानव को स्वर्ग सुख मिलता है और विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी अकर्मी बनने वाले कर्मयोगी को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है| अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव जगत के लिए ईश्वरीय संदेश है अगर कर्मभूमि पर सभी मनुष्य कल्कि ज्ञान सागर में बताए गए मानव धर्म के मार्ग पर चल कर सत्कर्मी बन जाएंगे तो सुन्दर सृष्टि के रचियता परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म धरती को स्वर्ग बना देगे……
जर जर करते झरने फिर से, धरती पर बहा दूंगा|
कल कल करती नदियां वो भी, घी दूध की बहा दूंगा |
घर घर चर्चा रहे धर्म की, धर्म ध्वज फहरा दूंगा |
पंचमकाल में पंचरंगी ध्वज की, महिमा दिखला दूंगा |
पंचमकाल में सर्वधर्म ध्वज की, महिमा सबको दिखला दूंगा |
वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय है, इसे पंचमकाल भी कहते है| इस युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में मानव चेतना की वो मिसाल कायम होती है, जिससे कर्मभूमि पर तीव्र गति से विकास होते है इसी के साथ मानव धर्म की प्रभावना भी होती है| संगमयुग में कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, अजन्में, निष्कलंक, निराकार दिव्य महाशक्ति द्वारा किसी निष्काम कर्मयोगी को निमित बनाकर मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान दिया जाता है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर अजन्में, निष्कलंक, निराकार दिव्य महाशक्ति का जन्म-मरण नहीं किसी न किसी निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण होता है, जिसे कर्मभूमि पर ईश्वर का प्राकट्य कहते है| इस क्रिया में दिव्य महाशक्ति परकाय प्रवेश कर किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में अपने स्वरूप को रचती है और दिव्य महाशक्ति उस निष्काम कर्मयोगी के माध्यम से कर्मभूमि पर धर्म की पुनः स्थापना व प्रभावना करवाती है|
मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों का परम हितेषी बनकर, जन कल्याण की भावना रखते हुए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेशानुसार सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म की प्रभावना करने जा रहा हूँ| आज हम देख रहे है कालदोष के कारण कर्मभूमि पर ईश्वर और मानव धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय बन जाने के कारण व धर्म के नाम पर मानव के मन मस्तिष्क में अनेक प्रकार की रुढ़िवादियाँ प्रवेश कर जाने के कारण कर्मभूमि पर धर्म के प्रति ग्लानि निरंतर बढ़ने लगी है| ज्ञात रहे जिस कर्मभूमि पर कभी घी-दूध की नदियां बहती थी आज यहाँ पानी का भी अभाव दिखाई दे रहा है| क्योंकि सम्पूर्ण मानव जगत के लोग धर्म के नाम पर अधर्म के मार्ग पर चलने लगे है|
सनातन धर्म ग्रंथो के अनुसार गंगा माता को देवलोक से पृथ्वीलोक पर लाने के लिए शिवजी ने गंगा माता को अपने मस्तक पर धारण किया था, आज का मानव धर्म के नाम पर गंगा माता को अपने कदमो तले रौंद रहा है| पवित्र गंगा माता के जल में अपने शरीर के मेल को धो रहा है, इतना ही नहीं उसमे लाशे भी बहा रहा है साथ ही जली हुई लाशों की राख और हड्डियाँ भी बहा रहा है, भला ये सब घृणित कार्य करना कैसे मानव धर्म का मार्ग हो सकता है ? अगर कोई हमारे घर में बहुत सारी लाशे और जली हुई लाशो की हड्डियाँ व राख लाकर डाल दे तो हमें कैसा लगेगा ? ज्ञात रहे गंगा माता के प्रति आस्था रखने वाले लोगों को युगानुसार अपनी सोच को बदलना होगा| गंगा माता की पवित्रता को कायम रखने के लिए, गंगा माता को सम्मान देने के लिए, गंगा माता के भक्तो को सारी रूढ़िवादी परम्पराओं का त्याग करना होगा और साथ ही अपनी आस्था को कायम रखने के लिए, गंगा स्नान करने के लिए, बहती गंगा के पवित्र जल को एक कलश में भरकर अपने शरीर पर अमृत की तरह डालकर अपने मन की आस्था को पूर्ण कर सकते है यही मानव धर्म का परम सत्य मार्ग है| मानव धर्म के नाम पर अज्ञानतावश गंगा माता का अपमान करना, गंगा माता को गंदी करना, प्रदूषण फैलाकर असंख्य जीवो की हिंसा करना और धर्म के नाम पर अधर्म का कामकर स्वयं के अमूल्य मानव जीवन को नष्ट कर देना कभी मानव धर्म का मार्ग नहीं हो सकता|
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, सभी कर्मयोगी मनुष्य रूपी जीवात्मस्वरूप में एक ही परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, अतः कर्मभूमि पर सभी कर्मयोगी सगुण जिवात्म्स्वरूप में भिन्न-भिन्न हो सकते है, किन्तु निर्गुण आत्मस्वरुपता में सभी एक समान है| अतः कर्मभूमि पर सभी मनुष्यों के लिए मानव तन ही चलता फिरता तीर्थ है, जिसके भीतर परम गुरुवर निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में व परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म जीवात्मस्वरूपता में विधमान रहते है, इसीलिए मानव का भौतिक शरीर दो भागो में विभाजित है और मनुष्य के शरीर के सभी अंग भी दो-दो है, यही अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन का अद्भुत रहस्य है इस रहस्य को कोई बिरला साधक ही अपने ईश्वर की कृपा से समझ सकता है| ज्ञात रहे अजन्मा निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप अपने दोनों रूप में निराकार है| अतः मानव मात्र एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है अतः मानव मात्र को अपने ह्रदय में सबकी सेवा सबसे प्यार की भावना रखना चाहिए| धर्म के नाम पर धार्मिक स्थलो में जाकर समय और पैसा बरबाद करने से मनुष्य दिखावे के लिए धार्मिक बन सकता है, किन्तु आत्मा से धर्मात्मा नहीं बन सकता| ज्ञात रहे सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परमात्मा परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है जिसमें मानव सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है जिसे परमात्मा का स्वरूप माना गया है| अतः सेवा करनी है तो मानव निर्मित पाषाण से बनी मूर्तियों की नहीं, सृष्टि में सगुण परमात्मा परब्रह्म द्वारा सृजित जिन्दा जीव-जीवात्माओं की करना चाहिए| ईश्वर सृष्टि में स्वयं द्वारा सृजित जीव-जीवात्माओं के भीतर विधमान रहता है, वो मानव निर्मित मूर्तियों में हरगिज नहीं मिल सकता…..
जब तक पत्थर दिल है तू इंसान, पत्थर में परमात्मा को कैसे पाएगा ?
जान ले अपने विराट आत्मस्वरूप को, तीन लोको का स्वामी बन जाएगा |
ईश्वरीय संदेशानुसार हम सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से अजन्में निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति के सत्यस्वरूप के बारे में अवगत कराना चाहते है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक परमब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किए बिना मानव के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे अजन्मा निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म एक है किन्तु उसके दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण व सगुण| अतः कर्मभूमि पर कर्मयोगी को निर्गुण परमब्रह्म की साधना करने से पहले सुंदर सृष्टि के रचियता सम्पूर्ण सृष्टि के जीव-जीवात्माओं के स्वामी, सम्पूर्ण मानव जगत के परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को भक्ति भाव से नमन करते हुए अपने ह्रदयस्थ विद्यमान ज्ञान के दातार परम गुरुवर निर्गुण परमब्रह्म की साधना करना चाहिए| ज्ञात रहे सगुण परब्रह्म ने मानव को कर्मभूमि पर सगुण से निर्गुण बनाने के लिए मानव के आत्मकल्याण के लिए सुंदर सृष्टि की रचना कर कर्मभूमि का सृजन किया है और कर्मभूमि पर भ्रमण करने के लिए मानव को प्रकृति के पंचतत्वों से बना भौतिक शरीर प्रदान किया है| अतः मनुष्यों के लिए परम माता पिता परमात्मा परब्रह्म प्रथम पूज्यनिय है और इसके बाद मानव को अपनी आत्मा के स्वामी परमब्रह्म की साधना करना चाहिए| ज्ञात रहे सनातन धर्म में माता-पिता को प्रथम स्थान दिया गया है और आध्यात्मिक ज्ञानानुसार मानव जगत के परम माता पिता परमात्मा परब्रह्म ही है जिन्हें शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से भी जाना जाता है| ज्ञात रहे परमात्मा वो है जिन्होने हमे पैदा किया है वो हमारी जीवात्मा के स्वामी है और परमेश्वर अल्लाह ईश्वर वो है जो अजन्मा अजर अमर अविनाशी है जो नातो किसी की संतान है और नहीं उसकी कोई संतान है वही हमारी निष्कलंक निराकार आत्मा के स्वामी है|
ज्ञात रहे अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार विशाल ब्रह्मांड की रचना अजन्में निष्कलंक निराकार परम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म की इच्छा शक्ति से हो गई है, जो परम सत्य, गुण दोष रहित, अनादी, अजर-अमर, अविनाशी है, वही दिव्य महाशक्ति सगुण परब्रह्म स्वरूप में सत-असत, परिवर्तनशील है| परमब्रह्म की इच्छा-शक्ति से ही विशाल ब्रह्मांड की उत्पति होकर सूरज, चाँद, सितारे, अणु, परमाणु, द्रव्य, हवा, पानी के साथ-साथ परमसत्य परमब्रह्म का ही सत-असत रूपी साकार स्वरूप प्रकट हुआ, जिसे सगुण परब्रह्म माना गया है| आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म अर्द्धनारीश्वर स्वरूप है, जो सृष्टि के विस्तार के लिए सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के रूप धारण किये हुए है| जो परम सत्य निर्गुण परमब्रह्म है वो विराट आत्मस्वरुपता में अजन्मा निष्कलंक निराकार निर्गुण है वही सगुण जीवात्मस्वरूप में सत-असत परिवर्तनशील है| निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में सभी आत्माओं के स्वामी है, उसी प्रकार सगुण परब्रह्म सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के स्वामी है| परमब्रह्म सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आत्माओं के स्वामी है जो कर्मभूमि पर मानव को विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनाकर जन्म-मरण से मुक्त्ति प्रदान कराते है जिसे आध्यात्मिक ज्ञानानुसार मोक्ष भी कहते है| परम ब्रह्म का ही दूसरा स्वरूप सत-असत रूपी साकार स्वरूप है जो जीवात्मस्वरूप है उसको सगुण परब्रह्म कहा गया है| अतः परब्रह्म ही सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के जन्मदाता पालनहार के रुप में परम माता पिता परमात्मा यानि स्वामी है जो कर्मभूमि पर कर्मयोगी को सत्कर्म के बदले कर्मभूमि पर और देवलोक में स्वर्ग सुख प्रदान कराते है| तामसिक प्रवृति के कर्मयोगी को कर्मभूमि पर ही नरक जैसी यातनाएं मिलती है|
ज्ञात रहे मानव निर्गुण व सगुण इन दोनों परम महाशक्तियों के अधीन है, अतः मानव को अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण करने के लिए निराकार परमब्रह्म की योग द्वारा साधना करनी चाहिए, जो ज्ञान मार्ग से कर्मयोगी का आत्मकल्याण करते है| इसी प्रकार सगुण परब्रह्म कर्मभूमि पर कर्मयोगी को भक्ति मार्ग द्वारा सद्बुद्धि प्रदान करते है, जिससे कर्मयोगी अपने जीवन में सत्कर्म द्वारा सुखी जीवन प्राप्त कर स्वर्ग जैसा सुख पा सकता है| अतः आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सम्पूर्ण सृष्टि में एक अर्द्धनारीश्वर परब्रह्म ही परम सत्य है जिनका प्रतिक शिवलिंग माना गया है| अतः मानव को भक्ति मार्ग में एक शिवलिंग की ही पूजा-पाठ करना चाहिए, मान्यता है एक शिवलिंग की पूजा से ही सृष्टि के सभी देवी देवताओं की पूजा हो जाती है| ज्ञात रहे सम्पूर्ण सृष्टि मे सभी देवी-देवता और मानव सगुण परब्रह्म का मायावी रूप है| अतः अपने एक स्वामी अर्द्धनारीश्वर परब्रह्म को छोड़कर अनेक प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा करना-कराना, अनेक प्रकार के देवी देवताओ की मूर्तियां बनाकर कर्म कांड करना-कराना, मूढ़ बुद्धि के लोगों की देन है| गीता में भी श्री कृष्ण ने इस बात को बार-बार दौराया है कि सृष्टि में देवी देवता व मानव का आलग से कोई अस्तित्व नही है| अतः मानव जगत को कल्कि ज्ञान सागर के ईश्वरीय संदेशानुसार असत्य का त्यागकर सत्य का अनुशरण करते हुये अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण करना चाहिए| एक को जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते |