||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||
कल्कि ज्ञान सागर का संदेश पूरी धरती सबका देश,
एक धरती….एक धर्म….एक सबका परमात्मा|
सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है,
जियो और सबको जीने में सहयोग करो, सबकी सेवा सबसे प्यार|
अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार अनादि काल से भारत की पावन भूमि कर्मभूमि का आध्यात्मिक खंड़ रहा है, इसलिए भारत युगो-युगो से मानव जगत को वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देता आया है भारत भूमि सम्पूर्ण मानव जगत के लिए एक आध्यात्मिक ज्ञान मंदिर है, इसीलिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोग भारत को आध्यात्मिक देश और विश्व धर्म गुरु के नाम से जानते है| युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, धरती पर पाप का बोझ मिटाने के लिए, भारत एक बार पुनः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव जगत को ईश्वरीय संदेश देने जा रहा है| अनेकता में एकता हिन्द की विशेषता हिन्द की विशेषता बने विश्व की विशेषता, हम सब एक है सबका स्वामी एक, जियो और अन्य सभी जीव-जीवात्माओं को जीने में सहयोग करो|
कल्कि ज्ञान सागर का संदेश पूरी धरती सबका देश| ज्ञात रहे 21वी सदी में कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मावन जगत के लोगों को ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराने वाला है| इसके बाद कर्मभूमि पर कभी युग परिवर्तन नही होंगे, नहीं कभी कोई कालदोष लगेगा| हमारी धरती हमेशा-हमेशा के लिए अविनाशी स्वर्ग बन जाएगी और धरती पर सतयुगी दुनिया का सृजन होने के बाद सनातन धर्म ही जन-जन का धर्म होगा, जिसे विश्व धर्म माना जायेगा| 21वी सदी के बाद कर्मभूमि पर सदा के लिए कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म कायम रहेगा| ज्ञात रहे जब सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बन जायेगे तब मानव जगत के लोगों के लिए अंतरिक्ष के द्वार स्वतः ही खुल जाएगे| इसी के साथ अंतरिक्ष में अन्य ग्रहों पर धरती जैसी अनेक दुनिया बसेगी और सतयुगी दुनिया के लोग देश-विदेश का नहीं एक दुनिया से दूसरी दुनिया का सफर करेंगे| किन्तु ज्ञात रहे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी बनने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कल्कि ज्ञान सागर में बताए गए सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का पालन करना होगा| मानव को सत्यवादी बनने के लिए सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, युगानुसार धर्म के नाम पर असत्य और रूढ़िवादि परम्पराओ का त्याग करना होगा |
ज्ञात रहे मानव के नश्वर भौतिक शरीर की एक पल की गारंटी नहीं है तो भला मानव धरती का स्वामी कैसे बन सकता है ? अतः कर्मभूमि पर मानव को स्वयं के सत्यस्वरूप को स्वयं के भीतर विद्यमान ईश्वरीय वैभव को जानना होगा| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव जब तक नश्वर भौतिक शरीर रूपी मैं से मुक्त नही हो जाता तब तक हजारों जन्म पाकर भी अपना मानव जीवन सार्थक नही बना सकता| इस मायावी सृष्टि में मानव किसी का माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी, बेटा-बेटी कैसे बन सकता है ? ज्ञात रहे झूठी दुनिया का प्यार है झूठा सच्चा है आत्मस्वरूप तुम्हारा, मनुष्य की श्वांसे रुकते ही एक पल में मनुष्य का सब कुछ छूट जाता है कुछ भी तो साथ नहीं जाता जिसने अपने भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जाना, जिसने एक ही ईश्वर के दो स्वरूप व दो चरित्र को जाना, जिसने ईश्वर के निर्गुण व सगुण स्वरूप को जाना उसने सब कुछ जान लिया|
मानव की आत्मस्वरूपता ही उसका अपना सत्यस्वरूप है| दृष्टि ही सृष्टि है और सृष्टि में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वो सब कुछ नजरो का धोखा है| ज्ञात रहे सृष्टि प्रभु से प्रकट हुई महामाया है जो मनुष्य और देवी-देवताओ को मोह-माया के जाल में कैद कर मायावी भौतिक दृष्टि से मायावी नज़ारे दिखाती है किन्तु नजरे देकर नजारे दिखाने वाला किसी को नजर नहीं आता| मानव को सृष्टि में जो भी कुछ नजर आ रहा है वो सब कुछ असत्य है नश्वर है और जो सत्य है अविनाशी है जो सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओ का परम हितेषी है वो कभी किसी को दिखाई नहीं देता| ज्ञात रहे इस मायावी सृष्टि में सृष्टि के विस्तार के लिए एक सगुण परब्रह्म ने ही अनेक प्रकार के देवी-देवता व मनुष्य समेत अनेक जीव जीवात्माओं का रूप धारणा कर स्वयं कर्ता-भरता-हरता बना हुआ है| एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक रूप है, किन्तु सृष्टि में दृष्टि की माया में कैद होकर सभी देवी-देवता व मनुष्य अपने नश्वर भौतिक शरीर के बनकर अपने सत्यस्वरूप अपने विराट आत्मस्वरूप को भूल जाते है| कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को उनके सत्यस्वरूप की याद दिलाने आया है, निराकार ईश्वर व सृष्टि के अद्भुत रहस्य को जानना चाहते हो तो स्वयं के भीतर अद्भुत रहस्यमय ईश्वरीय वैभव व निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को, स्वयं के सत्यस्वरूप को, स्वयं की आत्मशक्ति को जानना होगा| चिंतन करो जरा अपने आप के बारे में…….
कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं, कब किस जगह मर जाना है |
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है|
इतना तो मान लेना, यह है कल्कि का कहना ,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है |
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है ?
बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है ?
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक निर्गुण परमब्रह्म ही परम सत्य है उसे विदित किए बिना मनुष्यों के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ज्ञात रहे एक ही निर्गुण परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है, जिसे एक ही सिक्के के दो पहलू कह सकते है| अतः सम्पूर्ण ब्रह्मांड में दो परम महाशक्तियां है जिनके कारण विशाल ब्रह्मांड और सुंदर सृष्टि का सृजन और विस्तार हुआ है| प्रथम स्वरूप अनादी है निर्गुण परमब्रह्म जो विराट आत्मस्वरूप परम सत्य अजर-अमर, अविनाशी, अजन्मा, गुण-दोष रहित है, जिनकी इच्छा शक्ति से विशाल ब्रह्मांड का उदय हुआ है वही एक निर्गुण परमब्रह्म सभी पवित्र आत्माओं के स्वामी है| उसी निर्गुण परमब्रह्म का ही दूसरा स्वरूप सत-असत रूपी अर्द्धनारीश्वर सगुण जीवात्मस्वरूप है जिसे सगुण परब्रह्म कहते है| आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म को शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से भी जाना जाता है| ज्ञात रहे मानव सगुण परब्रह्म को अपनी भौतिक मायावी दृष्टि से नहीं देख सकता| जिस सगुण परब्रह्म की इच्छा शक्ति से सुंदर सृष्टि का सृजन और विस्तार हुआ है, जिनके द्वारा कर्मभूमि का सृजन होकर मानव को सगुण जीवात्मस्वरूप से पुनः निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बनकर अपना आत्मकल्याण करने के लिए कर्मभूमि पर जन्म मिला है|
ज्ञात रहे मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है, कर्मभूमि पर मानव-मात्र के भीतर निर्गुण परमब्रह्म निर्गुण आत्मस्वरूपता में व सगुण परब्रह्म सगुण जीवात्मस्वरुपता में विद्यमान रहते है, इसलिए मानव को सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप कहा गया है| मानव निर्गुण व सगुण दोनों महाशक्तियों के अधीन है| मानव-मात्र निर्गुण आत्मस्वरूपता में परमब्रह्म स्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरुपता में सगुण परब्रह्म स्वरूप है| ज्ञात रहे मानव सगुण जीवात्मस्वरूप में भिन्न-भिन्न हो सकते है, आत्मस्वरूपता में सभी मनुष्य एक समान है| मानव जगत के लोग आत्मस्वरूपता में कभी भेदभाव नहीं कर सकते| आत्मा बिना वीजा बिना पासपोर्ट के पूरी कर्मभूमि पर भ्रमण कर सकती है और कही पर भी भौतिक शरीर धारण कर निवास कर सकती है तो भला मानव नश्वर भौतिक शरीर के बनकर क्यो आपस में भेदभाव करके अपना अमूल्य मानव जीवन नष्ट कर रहे है|
ज्ञात रहे सत-असत जीवात्मा के रूप में भी सभी मनुष्य एक समान है किन्तु हमारे भौतिक शरीर भिन्न-भिन्न होने से हम अपने भौतिक शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मान लेते है किन्तु दृष्टि ही सृष्टि है सब नजरों का धोखा है| सृष्टि के सभी देवी-देवता और मनुष्य एक ही परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है किन्तु सभी देवी-देवता और मनुष्य मायावी दृष्टि के कारण अज्ञानतावश मोह-माया के बंधन मे कैद होकर मायावी सृष्टि में, दुख-सुख रूपी संसार सागर में गौते खाते रहते है| ज्ञात रहे हम सब अनाज के एक कण के समान है एक बीज से अनेक कण बन जाते है जैसे एक गेहूं के बीज से अनेक गेहूं बन जाते है, एक ही पेड़ पर अनेक फल, अनेक पत्ते होते है क्या वो आपस में भेदभाव करते है? नहीं करते फिर हम सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा एक ही परमब्रह्म के अंशज व एक ही परब्रह्म के वंशज होकर भी आपस में भेदभाव कर क्यों अपना अमूल्य मानव जीवन नष्ट कर रहे है ?
ज्ञात रहे हमारे परम माता पिता परमात्मा पर ब्रह्म ने हम सभी मनुष्यों को कर्मभूमि पर आत्मकल्याण के लिए जन्म दिया है,कर्मभूमि का मालिक बनने के लिए नहीं, जिस कर्मभूमि पर प्रभु ने हमे जन्म दिया है उस कर्मभूमि पर तीन भाग पानी है सिर्फ एक चौथाई भाग पर ही हम मनुष्य निवास करते है, उस एक चौथाई भाग के भी मनुष्यों ने अपने निजी स्वार्थ के खातिर 195 टुकड़े कर दिये है और अब इन टुकड़ो के लिए आपस में लड़कर मर मिटने के लिए भी तैयार है| ज्ञात रहे विनाश काले विपरीत बुद्धि विकास मे हजारो वर्ष लग जाते है और महाविनाश के लिए कुछ ही पल काफी है| मनुष्यो के सत्कर्म ही कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| अतः अपनी कर्मभूमि को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत को कल्कि ज्ञान सागर में बताए गए मानव धर्म के मार्ग पर चलना होगा |
आज कालदोष के कारण अज्ञानतावश विकसित और विकासशील देश कर्मभूमि पर देश-विदेश की सीमाओं को लेकर लड़ रहे है, इन सीमाओं के कारण ही कर्मभूमि पर आतंकवाद ने जन्म लिया है| अब आतंकवाद को जड़ से मिटाने के लिए कर्मभूमि पर देश-विदेश की सीमाओं को मिटाना होगा| ज्ञात रहे कल्कि ज्ञान सागर सभी विकसित और विकासशील देशो को उनकी अपनी दुनिया का स्वामी बना देगा| सभी विकसित और विकासशील देशो की अंतरिक्ष में अपनी खुद की दुनिया होगी, 21 वी सदी में किसी देश के नहीं अपनी दुनिया के स्वामी बनो| अगर धर्म के नाम पर अधर्मी बने तो मिट्टी में मिल जाओगे और जब मिट्टी में मिल जाओगे तब तुम सिर्फ एक मानव कंकाल के रूप मे जाने जाओगे फिर कौनसा तुम्हारा देश होगा कौनसी तुम्हारी जाति होगी और कौनसा तुम्हारा मजहब धर्म-संप्रदाय होगा, ज्ञात रहे जब धरती थोड़ी सी कंपन कर गई तो मनुष्यों के बनाए सारे के सारे हथियार धरा के धरा पर धरे ही रह जाएंगे और सब के सब मिट्टी में मिल जायेगे| ज्ञात रहे मानव कभी प्रकृति और परमात्मा से नहीं लड़ सकता| अतः सतयुगी दुनिया में रहना है तो सत्कर्मी बनो | जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|