कर्मभूमि पर ईश्वर का जन्म-मरण नहीं निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में प्राकटय होता है, जिसे परकाय भी प्रवेश कहते है|

विज्ञान भी होगा नतमस्तक जब कर्मभूमि पर पूर्ण प्रमाण के साथ काल के भी काल महाकाल, देवादी देव महादेव सगुण परब्रह्म लेंगे निष्कलंकावतार और निर्गुण परमब्रह्म का कर्मभूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में होगा प्राकटय| सुंदर सृष्टि के रचयिता, सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीवों के जन्मदाता, पालनहार ब्रह्मा-विष्णु-महेश के भी स्वामी सगुण परब्रह्म देवादी देव महादेव ने एक होकर भी सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के मायावी रूप धारण कर रखें है। वही परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म सारे जगत के सभी जीवों के परम हितेषी है, जो 21वी सदी में कर्मभूमि पर आखरी अवतार लेकर सम्पूर्ण मानव जगत को अद्भुत रहस्मय मायावी सृष्टि सृजन का ज्ञान देकर आज के विकास के युग में ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करा देंगे| 

सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी सगुण परब्रह्म ही सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के बीच अनेकता में एकता कायम कर विश्व में शांति स्थापित कर सकते है। कर्मभूमि पर बार-बार होने वाले युग परिवर्तन व महाविनाश को रोककर कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बना सकते है। सम्पूर्ण मानव जगत के लिए बड़े हर्ष का विषय है, युगानुसार युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, कर्मभूमि के आध्यात्मिक खंड भारत की पावन भूमि पर वीरो की भूमि राजस्थान प्रान्त में वाग्वरांचल व लोड़ी काशी के नाम से विख्यात आध्यात्मिक धर्म धरा पर काल के भी काल महाकाल देवादी देव महादेव सगुण परब्रह्म का पूर्ण प्रमाण के साथ ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण हो चुका है।

कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए युगानुसार कर्मभूमि पर वाग्वरांचल की पवित्र धरा पर सैकड़ो गणमान्य नागरिक व हजारो धर्म प्रेमी लोगों के बीच 31 दिसम्बर 2016 रात्रि 12 बजे नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना करने के बाद स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर प्रभावना जारी है। इसी क्रम में वागड़ अंचल में मानस मण्डल परिवार के हजारो भक्तो द्वारा प्रति वर्ष किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान का भोलेनाथ के प्रति भक्ति का विशेष महत्व है। भविष्य में इस भक्ति लहर की महिमा स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी कि भोले बाबा अपने भक्तों की पुकार सुनकर स्वयं को रोक नहीं पाये और किस तरह अपने भक्तों के दुःख दर्द दूर करने धरती पर पाप का बोझ मिटाने के लिए दौडे चले आए। जय कल्कि ज्ञान का सागर-ज्ञान की द्वारिका माही सागर। वागड़ बनेगा वृंदावन।

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