अदभुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार “एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति” भावार्थ सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ब्रह्म ही परम सत्य है, उसे विदित किये बिना मानव के लिए इस संसार से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| ईश्वर एक है इस बात को सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सामान रूप से जानते मानते है, किन्तु उन्हें यह नहीं पता कि उस एक ही ईश्वर के दो स्वरूप दो चरित्र है| निर्गुण व सगुण। ईश्वर निर्गुण स्वरूप में अनादि, अजर, अमर, अविनाशी, अजन्मा, गुण, दोष, रहित निष्कलंक निराकार है, न तो उसे किसी ने बनाया है नहीं उसे कोई मिटा सकता है, वो न तो किसी की संतान है और नहीं उसकी कोई संतान है| सम्पूर्ण ब्रह्मांड में वही एक परमसत्य है, उसके जैसा न कोई था, न कोई है, नहीं कभी कोई होगा| विज्ञान उस दिव्य महाशक्ति को ऊर्जा मानता है जिसे वेदों में ब्रह्म व कल्कि ज्ञान सागर में परमब्रह्म माना गया है|
दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा-शक्ति से उनका स्वयं का दूसरा स्वरूप मायावी सगुण परब्रह्म के रूप में प्रकट हुआ, उसी सगुण परब्रह्म द्वारा मायावी सृष्टि का सृजन हुआ| इस मायावी सृष्टि में मायावी सगुण परब्रह्म स्वयं ही सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव, सृष्टि का छोटे से छोटा जीव व जीवात्मा बनकर अनेक रूप में सृष्टि में विचरण कर रहे है| एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति एक ब्रह्म के अलावा सम्पूर्ण ब्रह्मांड में दूसरा कोई भी नहीं है जो निर्गुण स्वरूप में निराकार है वही सगुण स्वरूप में अनेक जीव-जीवात्माओं के रूप में साकार रूप धारण किये हुए है| सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा सगुण परब्रह्म के मायावी रूप है|
सगुण परब्रह्म अर्धनारीश्वर स्वरूप है उनका प्रतीक शिवलिंग है, अर्धनारीश्वर स्वरूप सगुण परब्रह्म सर्व प्रथम सृष्टी के सृजन के लिए अपनी इच्छा-शक्ति से स्वयं के स्वरूप को शिव-शक्ति के रूप में प्रकट करते है और सृष्टि में स्वयं को पुरुष और प्रकृति के रूप में स्थापित करते है| इसके बाद सृष्टि के विस्तार, पालन और संहार के लिए सगुण परब्रह्म स्वयं को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में स्थापित करते है| शक्ति स्वयं को सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश की अर्धांगिनी के रूप में स्थापित करती है| कर्मभूमि पर शिव नर के रूप में एवं शक्ति नारी के रूप में अवतरित होकर मानव जाति का विस्तार करते है, माता-पिता के रूप में मानव के लिए जन्मदाता पालनहार व गुरु बनकर मानव की सेवा करते है| इस प्रकार सृष्टि में मानव का अपना अलग से कोई अस्तित्व नहीं है|
एको परब्रह्म द्वितीयो नास्ति सम्पूर्ण सृष्टि में भी एक परब्रह्म ही परम सत्य है, उसके आलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा नहीं है| अतः कर्मभूमि पर मानव होकर मानव के साथ धर्म के नाम पर जाति-संप्रदाय का भेदभाव करना, परमात्मा स्वरुप मानव होकर परमात्मा स्वरुप मानव से नफरत करना मतलब अपने अमूल्य मानव जीवन को निर्थक बनाना है| क्योकि कर्मभूमि पर मानव के कर्मो के अनुसार जब तन परिवर्तन होता है तब उस मनुष्यरूपी जीवात्मा के लिए कर्मभूमि पर सब कुछ परिवर्तन हो जाता है| हम सब एक है सबका स्वामी एक, कर्मभूमि पर जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट निर्गुण आत्मस्वरूप बने बिना इस संसार से मानव के लिए मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है|
परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म कर्मभूमि पर अनेक प्रकार के जीव-जीवात्मा के रूप में अवतरित होकर स्वयं कर्ता, भरता, हर्ता बने हुए है, इसीलिए मानव को परमात्मा स्वरूप कहा गया है| सृष्टि के रहस्यमय खेल में मानव जीवन कर्म प्रधान है। सृष्टि के सभी जीव-जीवात्मा एक सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है। मानव को परब्रह्म स्वरूप सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं से प्रेम करते हुए, यथा-शक्ति सभी जीवो की सेवा करना चाहिए| सृष्टि के छोटे से छोटे जीव की हिंसा करना महापाप है, मानव को किसी भी जीव की हिंसा करने से बचना चाहिए|
कर्मभूमि पर मानव-मात्र के लिए सत्कर्म-सेवा-प्रेम से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे से प्रेम करते हुए, असहाय लोगों को जीने में सहयोग करना चाहिए। मानव को कर्मभूमि पर स्वर्ग-सुख पाने के लिए सत्कर्मी बनना होता है और अपना आत्मकल्याण करने के लिए देह भाव रूपी मायावी मैं से मुक्त होकर, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण करना होता है| स्वयं के विराट आत्मस्पवरूप को जानो आत्मज्ञानी बनकर अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं। अधिक जानकारी के लिए प्ले स्टोर से एप डाउनलोड करे KALKI GYAAN SAGAR