एक ही ईश्वर के दो स्वरूप है, निर्गुण स्वरुप में जो ज्ञानदाता है, वही सगुण स्वरुप में जन्मदाता, पालनहार है…

ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है ईश्वर निर्गुण आत्मस्वरूप में ज्ञान दातार है व सगुण जिवात्म स्वरूप में जन्मदाता पालनहार| कर्मभूमि पर मानव को अगर अपना मानव जीवन सार्थक बनाना है तो उसे आत्मज्ञानी बनना होगा, अनेक प्रकार के धर्म ग्रंथो, धार्मिक स्थलों को छोड़कर अपने भीतर के द्वार खोलने होगे| कर्मभूमि पर मानव-मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है|

ईश्वर और मानव धर्म रूपी दया, सेवा, प्रेम का प्राकटय मानव के भीतर ह्रदय में होता है, इसके लिए मानव को अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल और धर्म ग्रंथो की नहीं है चिंतन करने की जरुरत है, क्योंकि मानव धर्म के लिए सिर्फ दो शब्दों का ज्ञान पर्याप्त है, वो है सत्कर्म और सेवा| सत्कर्मी बनकर निष्काम भावना से सेवा करने वाला इन्सान मानव जगत के लोगों के लिए परमात्मा स्वरूप बन जाता है| सेवा परमोधर्म मानव-मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है| सत्कर्म मानव को कर्मभूमि पर स्वर्ग सुख प्रदान कराते है और निष्काम भावना से किसी की सेवा करने वाले कर्मयोगी के लिए एक न एक दिन मुक्ति के द्वार स्वतः ही खुल जाते है| सत्कर्मी बनो सुखी रहो| 

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