कल्कि ज्ञान सागर का उद्देश्य – मानव के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव को परमात्मा स्वरूप बनाकर ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराना है…

मैं ही अल्लाह, मैं ही ईश्वर, मैं ही राम, रहीम हूं,
मैं ही ईसा, मैं ही मोहम्मद, मैं ही कृष्ण, कबीर हूं |
मैं ही हूं बुद्ध, मैं ही महावीर, मैं ही सतगुरू, गोविन्द हूं,
मैं ही हूं हर दिल की धड़कन, मैं ही सभी में आत्मस्वरूप हूँ |

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक निर्गुण परमब्रह्म ही परमसत्य है, जो अनादी, अजन्मा, गुण-दोष रहित, अजर-अमर अविनाशी है, जिसे किसी ने बनाया नहीं, जिसे कोई मिटा नहीं सकता उस निष्कलंक, निराकार, दिव्य महाशक्ति को विदित किये बिना मानव के लिए मृत्यु लोक से मुक्ति का और कोई उपाय नहीं है| कर्मभूमि पर निष्कलंक, निराकार, निर्गुण परमब्रह्म का न तो कभी जन्म हुआ है और नहीं कभी होगा| ज्ञात रहे निर्गुण परमब्रह्म का कर्मभूमि पर जन्म-मरण नहीं किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में ज्ञान एवं आत्मशक्ति स्वरूप  भव्य अवतरण होता है, इस क्रिया को परकाय प्रवेश भी कहते हैं|

आज के विकास के युग में मानव जगत के लोगों को अल्लाह-ईश्वर के नाम पर लड़ने की नहीं कर्म करने के ज्ञान की जरुरत हैं| मानव जन्म से नहीं निष्काम कर्म से महान बनता है, अतः कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान प्रदान कराते हुए, निराकार दिव्य महाशक्ति को अनेक नामों से मुक्त कराने के लिए निराकार के सत्यस्वरुप से अवगत कराने वाला है|

कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी निष्काम कर्मयोगी बनकर राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण, कबीर की तरह स्वयं की अंतःप्रेरणा से आध्यात्मिक ज्ञान की प्रभावना करते हुए, निष्काम कर्मयोगी अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता हैं| युगों युगों से कर्मभूमि पर एक निराकार परम ब्रह्म ही युगानुसार किसी निष्काम कर्मयोगी के ह्रदय में अवतरित होकर मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देते आए हैं, युग परिवर्तन की संधिवेला संगम युग में कल्कि ज्ञान सागर कर्मभूमि पर अजर-अमर, अविनाशी सतयुगी दुनिया का सृजन कर आने वाले भविष्य में  युग परिवर्तन को भी रोकने वाला है|

ज्ञात रहे निराकार कभी साकार प्रकट नहीं होते, इस बात को सिद्ध करने के लिए आज के विकास के युग में युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए निराकार परमब्रह्म का एक नास्तिक, अज्ञानी, गृहस्थ जीवन वाले साधारण निष्काम कर्मयोगी कल्कि साधक के जीवन दर्पण में कल्कि ज्ञान सागर स्वरूप प्राकट्य हुआ है| युगानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को धर्म और ईश्वर के नाम पर बनें जाति-संप्रदाय, अनेक प्रकार के धर्म ग्रन्थ और धार्मिक स्थलों से मुक्त करवाने के लिए, आध्यात्मिक ज्ञान की प्रभावना भी अनेक हाथो से निराकार नेट के माध्यम से करवा रहे हैं| जिस से सम्पूर्ण मानव जगत के लोग अपने भीतर विधमान निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म को जानकर उनके द्वारा बताये गए सदमार्ग पर चलकर अपने अमूल्य मानव जीवन को सार्थक बना सके | जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति , सत्यमेव जयते | 

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