ईश्वर को पाना है तो स्वयं के साधक बनों स्वयं के भीतर ईश्वरीय वैभव को स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानों….

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति, किन्तु एक ही ब्रह्म के दो स्वरूप, दो चरित्र हैं। जो निर्गुण आत्मस्वरूपता में अनादि, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी, गुण-दोष रहित, परम सत्य, निष्कलंक, निराकार हैं। वहीं सगुण मायावी जीवात्मस्वरूप में सत-असत व परिवर्तनशील हैं, जिसे निर्गुण ब्रह्म से प्रकट हुई महामाया भी कहते है|

सृष्टि का सृजन सगुण परब्रह्म द्वारा हुआ हैं। सगुण परब्रह्म भी एक ही है, किन्तु एक होकर भी उसने सृष्टि में अनेक प्रकार के देवी-देवता व मानव के साथ ही अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओं के मायावी रूप धारण कर रखे हैं। एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्म के अलावा दूसरा कोई भी जीव-जीवात्मा नहीं हैं।

मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं। मानव को सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप माना गया हैं। मानव के भीतर ईश्वर निर्गुण आत्मस्वरूप व सगुण जीवात्मस्वरूप दोनों रूप में विद्यमान हैं। ईश्वर एवं स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानना है तो स्वयं को साधक बनना होगा| मानव अपने भीतर से जीवात्मस्वरूप में सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप हैं व आत्मस्वरूपता में निर्गुण प्रभु परमब्रह्म स्वरूप है। कर्मभूमि पर मानव सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है।

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