||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||
ईश्वर किसी का भाग्य विधाता नहीं है कर्मयोगी स्वयं ही स्वयं के भाग्य का विधाता है वो स्वयं ही स्वयं के कर्मो द्वारा स्वयं का भाग्य लिखता है कर्मभूमि पर कर्मयोगी कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं|
कर्मभूमि पर कर्मयोगी को अपना मानव जीवन सार्थक बनाना है तो उसे ईश्वर को जानने के लिए सबसे पहले स्वयं के सत्यस्वरूप को जानना होगा की वो कौन है? कर्मभूमि पर कहाँ से आया है? कर्मभूमि पर उसके आने का मकसद क्या है? इस प्रकार आत्म चिंतन करने से ही कर्मभूमि पर कर्मयोगी का मानव जीवन सार्थक हो सकता है| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम कल्कि ज्ञान सागर का सन्देश……..
कहाँ से तुम आए हो, कहाँ तुमको जाना है जी,
पता नहीं कब, किस जगह मर जाना है |
अरे जिसने बनाया तुम्हें, उसको तो जाना नहीं ,
धर्म कर्म की बातों को, तुमने कहाँ जाना है|
अरे इतना तो मान लेना, यह है प्रभु का कहना ,
खाली हाथ आए हो जी, खाली हाथ जाना है|
अरे माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाना है तो,
बतलाओ जग से क्या साथ लेकर जाना है|
अरे भले कर्म कुछ ऐसे, करलो ए प्यारे लोगों,
अगर भवसागर से, पार तुम्हें जाना है|
अगर भवसागर से, पार तुम्हें जाना है|
अद्भुत रस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव सगुण परमात्मा परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, जो अपने मन की इच्छाओं को अपनी बुद्धि के द्वारा अपने कर्मो के माध्यम से पूरी कर सकता है, किन्तु मानव जीवन कर्म प्रधान है| कर्मभूमि पर कर्मयोगी कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव के सत्कर्म ही मानव के सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है| ज्ञात रहे मानव जन्म से नहीं निष्काम कर्म से महान बनता है, ईश्वर किसी भी इन्सान को अमीर-गरीब, महान नहीं बनाता, नहीं किसी को दुःख-सुख देता है, नहीं किसी का भला बुरा करता है, नहीं किसी को भगवान और अवतार बनाता है क्योंकि ईश्वर किसी का भाग्य विधाता नहीं है मानव जैसा बनना चाहता है, जैसा सोचता है, जैसे कर्म करता है वो वैसा ही बन जाता है|
देवलोक से कर्मभूमि को श्रेष्ठ माना गया है, इसलिए देवी-देवता भी कर्मभूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते है, ठीक उसी प्रकार जैसे कर्मभूमि पर कर्मयोगी मोक्ष जाने के लिए तरसते है| देव योनि से भी मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना गया है क्योंकि कर्मभूमि से मनुष्य अपने कर्मो द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड मे अपना साम्राज्य स्थापित कर सकते है एवं अपना आत्मकल्याण कर सकते है, देवलोक के देवी-देवता देवलोक में अपना आत्मकल्याण नहीं कर सकते| कर्मभूमि पर मानव अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बन सकता है| ज्ञात रहे मानव देवी-देवताओं से श्रेष्ठ होकर भी अज्ञानतावश अपने भीतर के ईश्वरीय वैभव को नहीं जानकर कर्मभूमि पर अपने अमूल्य मानव जीवन को नष्ट कर देता है| आज के विकास के युग में भी मानव अपने हृदयस्त विद्यमान दिव्य महाशक्ति को बाहर धार्मिक स्थलो में ढूंढ रहा है| ज्ञात रहे मानव को ईश्वर से ज्यादा ईश्वर द्वारा दिये गए कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है, जिससे कर्मभूमि पर उसका मानव जीवन सार्थक हो सके|
ज्ञात रहे मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है निर्गुण परमब्रह्म कर्मभूमि पर कर्मयोगी को सिर्फ कर्म करने का ज्ञान प्रदान करा सकते है किसी भी कर्मयोगी से निधारित कर्म नही करवा सकते और बिना कर्म के किये वो मानव को एक रति भर भी कुछ नहीं दे सकते| मूढ़ बुद्धि के लोग है जो कहते है मुझे सब कुछ मेरा ईश्वर दे रहा है, जब की सच तो यह है कर्मभूमि पर कर्मयोगी सब कुछ अपने कर्मो से पाता है| ज्ञात रहे सुंदर सृष्टि के रचियता सम्पूर्ण मानव जगत के परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं को जीवन प्रदान करने के लिए हवा पानी भोजन अपनी सृष्टि में वृष्टि द्वारा देते है, किन्तु मानव को प्रकृति से सिर्फ श्वासे ही मिलती है पानी और भोजन को पाने के लिए मानव को कर्म करने पड़ते है| कर्मभूमि पर कर्मयोगी के कर्मो के अनुसार कर्मफल का चक्र जन्मो-जन्मों तक चलता रहता है जब तक मानव विदेही भाव में विराट आत्मस्वरुपता में निष्काम कर्मयोगी अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण नहीं कर लेता उसे जन्म-मरण से मुक्ति नहीं मिल सकती|
ज्ञात रहे अद्भुत रस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव के लिए कर्मफल सिद्धान्त अटल है, जैसी करनी वैसी भरनी| अगर मानव किसी का बुरा करता है, किसी का बुरा सोचता है तो उसके पास उसी की करनी उसी की सोच सौ गुना बड़कर लौट आएगी| दूसरों को दुःख देने वाला इंसान अपने जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता| हम जैसा बीज जमीन मे डालते है वैसी ही तो फसल पैदा होती है और उस एक बीज के बदले आपको अनेक बीज प्राप्त होते है यही कर्मफल का अटल सिद्धान्त है, इसलिए मानव को किसी का बुरा करने से पहले हजार बार सोचना चाहिए कि वो किसका बुरा कर रहा है| कर्मभूमि पर आप अपना जीवन मंगलमय बनाना चाहते है तो दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा आप स्वयं के लिए चाहते है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर कर्मयोगी के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है| सत्कर्मी बनो सदा सुखी रहो| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|