||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव कर्म करने के लिए स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं | दोस्तों ईश्वर कर्मभूमि पर कर्मयोगी को कर्म करने का ज्ञान प्रदान करवा सकता है, किसी भी कर्मयोगी से निर्धारित कर्म नहीं करवा सकता, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धान्त है | कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान प्रदान कराने के लिए, ईश्वर किसी न किसी निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञान व आत्मशक्ति स्वरूप अवतरित होकर उस कर्मयोगी के जीवन को आधार बनाकर, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान देता है | अतः मैं कैलाश मोहन अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म के संदेशानुसार अपनी अंतःप्रेरणा से सम्पूर्ण मानव जगत के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से कर्म करने के ज्ञान की प्रभावना करने जा रहा हूँ |
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव धर्म के नाम पर जाति-संप्रदाय बनाकर आपस में लड़ना, नफरत फैलाना सब से बड़ा पाप है, हमारा मकसद मानव जगत को ईश्वरीय संदेशानुसार सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का सत्य मार्ग बताना है, किसी भी धर्म-संप्रदाय के लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं | हम किसी भी कर्मयोगी का जाति-धर्म-संप्रदाय परिवर्तन नहीं कराते, हम सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों का हृदय से सम्मान करते है | साथ ही हम सम्पूर्ण मानव जगत से सभी जाति-धर्म-संप्रदाय के लोगों से करबद्ध निवेदन करते है, आप धर्म के नाम पर जाति-संप्रदाय अपना-अपना माने और सभी जाति-धर्म-संप्रदाय के लोगों का सम्मान करे| क्योंकि सम्पूर्ण मानव जगत के लोग अपने-अपने जाति-धर्म-संप्रदाय के अनुसार एक ही अजन्में, निष्कलंक, निराकार दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म की साधना, इबादत अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड जैसे अलग, अलग के नामों से करते है | सभी धर्म गुरुओ ने अपनी-अपनी अंतः प्रेरणानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म को मानव-मात्र का धर्म बताया है | हम सब एक है, सबका स्वामी एक, जियो और दूसरों को भी जीने में सगयोग करो | ज्ञात रहे हम सब एक ही परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की संतान है, एक ही सगुण परब्रह्म के अंशज है जिसे मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदान-ईव भी कहते है| ज्ञात रहे अजन्मा निष्कलंक निराकार निर्गुण परमब्रह्म सृष्टि के सभी देवी-देवता व मनुष्यों का परम गुरुवर है, जिसे मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड जैसे अलग, अलग के नामों से पुकारते है वो न किसी की संतान है नहीं उसकी कोई संतान है, उसके जैसा न कोई था, न कोई है, नहीं कभी कोई होगा|
एक धरती, एक धर्म, एक हम सबका परम माता-पिता परमात्मा |
भिन्न-भिन्न है हम सभी जीवात्मस्वरूप में , एक हम सबकी आत्मा |
ज्ञात रहे मानव जीवन कर्म प्रधान है जब-जब धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाता है तो प्राकृतिक आपदाएं आती है और महाविनाश की संभावनाए बढ़ जाती है | इस महाविनाश को अल्लाह-ईश्वर नहीं मानव जगत के सत्कर्म ही टाल सकते है | अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को अल्लाह, ईश्वर द्वारा दिये गए कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है उसके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की जरूरत है | क्योंकि मानव को अल्लाह ईश्वर परमब्रह्म कर्म करने का ज्ञान तो प्रदान करा सकता है मगर किसी भी मनुष्य से निर्धारित कर्म नहीं करा सकता मानव जगत के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है | ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है ईश्वर मानव को कर्म करने के ज्ञान देने के अलावा एक रति भर भी कुछ नहीं दे सकता, मूढ़ बुद्धि के लोग है जो कहते है मुझे अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर ,खुदा, गॉड ने दिया है या मुझे दे रहा है या उसने मेरा सब कुछ छीन लिया | इस तरह की गलत धारणा के कारण ही मानव अपने भीतर के वैभव को जानने और पाने से वंचित रह जाता है | ज्ञात रहे मानव स्वयं ही स्वयं के भाग्य का विधाता है, वो जैसे कर्म करता है उसे वैसा जीवन मिलता है|
ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की संतान है अजन्में, निष्कलंक, निराकार, अल्लाह ईश्वर निर्गुण परमब्रह्म की नहीं | अतः मानव समेत सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं के जन्मदातार, पालनहार परमात्मा सगुण परब्रह्म ही है, जो सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओं को जीवन प्रदान करने के लिए प्रकृति के माध्यम से सिर्फ हवा, पानी और भोजन उपलब्ध कराते है | मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है मानव जीवन कर्म प्रधान है अतः मानव अपने मन बुद्धि और कर्म द्वारा अपने मन की इच्छाएं पूरी कर सकता है, मानव जैसे कर्म करता है वैसा ही जीवन पाता है जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धान्त है मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं | ज्ञात रहे धर्म के नाम पर जाति-धर्म-सम्प्रदाय बनाकर लड़ना मतलब कर्मभूमि पर पाप का बोझ बढ़ाकर महाविनाश में बेमौत मरना है|
जाति, धर्म-संप्रदायवाद का, कब तक साथ निभाओगे ?
धर्म के नाम पर अधर्मी बने तो, मिट्टी में मिल जाओगे |
कलयुग की करनी को छोड़ो, तो सतयुग को पाओगे ,
अरे मरकर स्वर्ग किसने देखा, कर्मो से बचकर कहाँ जाओगे ?
दोस्तों कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लिए कर्म करने के ज्ञान की प्रभावना करने से पहले मैं सम्पूर्ण मानव जगत को बता देना चाहता हूँ की मैं एक गरीब ग्रामीण परिवार में जन्मा गृहस्थ जीवन वाला एक साधारण इंसान हूँ, मैं न तो किसी धर्म संप्रदाय का धर्म गुरु हूँ और नहीं मेरा अपना कोई संसारी धर्म गुरु है |दोस्तों मैंने जब होश संभाला तो मैं एक गरीब परिवार का साधारण नासमझ इंसान था, इसलिए बचपन से मेरे मन में एक ही पीड़ा थी की हम गरीब क्यों है ? भगवान ने हमें गरीब क्यों बनाया भगवान ने हमारे साथ पक्षपात क्यों किया ? इसी सोच के साथ मैंने अपने गाँव में रहकर 10 वी तक की पढ़ाई जैसे तैसे पूरी कर ली किन्तु आगे पढ़ाने के लिए गाँव से बाहर भेजने के लिए मेरे पिताजी के पास पैसे नहीं थे| मै चाहकर भी आगे की पढाई नहीं कर पाया|
मैंनें 10वी पास करने के बाद अपने पिताजी के छोटे से व्यवसाय में लगकर पैसा कमाना चाहा पर मेरा मन पिताजी के काम में नहीं लगा मै अपने परिवार के सपने साकार करने के लिए, पैसा कमाने के लिए पास ही के शहर बांसवाडा में चला जाता हूँ | शहर में आने के बाद मैं अपनी उमंग के अनुसार साहस और पूरी लगन के साथ परिश्रम करता हूँ और देखते ही देखते मैं अपने पूरे परिवार को पारसोला गाँव से बांसवाडा शहर में ले आता हूँ और कुछ ही वर्षो में अपने परिवार को गरीबी से मुक्ति दिलाकर उनके सारे सपने साकार करता हूँ किन्तु मुझे वो खुशियां नसीब नहीं हुई जिसकी मुझे बचपन से तलाश थी | मैं एक खुशहाल सक्षम प्यार भरा संयुक्त परिवार देखना चाहता था, मुझे पता नहीं था कि पैसा प्रेम का दुश्मन होता है, पैसो ने मेरे परिवार को तोड़ दिया, पैसो ने मेरे दिल के अरमानों को तोड़ दिया| मेरे मन में अफ्नो को खुशी देने की चाहत थी किन्तु मेरी चाहत ने मुझे अकेलापन और दर्द भरा जीवन दे दिया| मैं जहाँ से चला था आज वहीँ पर खड़ा था, इसी के साथ मेरा भगवान पर से विश्वाश टूट गया और मैं आस्तिक से नास्तिक बन गया |
दोस्तों मुझ कैलाश मोहन की जीवन गाथा यही है जिंदगी यानि सृष्टि के इस संसार में कभी खुशी कभी गम, नहीं कोई हमारा है और नहीं किसी के हम| मेरे जीवन की दर्द भरी गाथा सम्पूर्ण मानव जगत को आने वाले समय में कर्म करने का ज्ञान प्रदान करेगी और हर इंसान को संसार की जूठी मोह-माया से मुक्त करवा कर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप बनाकर इस संसार से मुक्ति दिलाएगी| मेरी जीवन गाथा यही है ज़िंदगी मानव जगत को बताएगी किस तरह एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाला एक साधारण इंसान अपनो को खुशियाँ देने के बाद खुद सड़को पर आ जाता है | ऐसी विकट घडी में मेरे जीवन में कुछ ऐसा चमत्कार होता है जो मुझे नास्तिक से पुनः आस्तिक बना देता है | इसी चमत्कार के साथ ही मुझे ज्ञात होता है मेरे जीवन में मेरे साथ आज तक जो भी कुछ घटित हुआ है या हो रहा है इसका जबावदार मैं स्वयं ही हूँ न तो भगवान है और नहीं मेरा अपना परिवार| इस संसार में मेरा अपना कोई नहीं है सब निमित्त मात्र है मेरी इसी सोच ने मुझे संसार की मोह माया से निकाल कर ईश्वर से जोड़ दिया और मैं निरंतर ईश्वर की साधना में लीन रहने लगा |
अपने भाग्य को स्वीकार करते हुए मैंने जीवन में आने वाली हर कठिनाई का डटकर मुकाबला किया, संघर्षमय जीवन पथ पर चलते हुए मै अपना वतन, अपना घर परिवार छोड़कर विदेश पहुँच जाता हूँ| देश की तरह विदेश में भी मैं मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर भी मै विदेश में अपना व्यवसाय स्थापित कर लेता हूँ| जीवन की अर्द्धशताब्दी में अपने पारिवारिक सभी संसारी दायित्व पूरे करने के बाद मै एक नदी की तरह जीवन की सारी कठिन राहो को पार करते हुए एक दिन सागर में जा मिलता हूँ | जिस प्रकार किसी नदी का सागर में मिल जाने के बाद उसका अपना नाम उसका अपना अस्तित्व मिट जाता है ठिक वैसे ही मुझ कैलाश मोहन का भी अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है और मुझ कैलाश मोहन के ह्रदय में दिव्य महाशक्ति का कल्कि ज्ञान सागर स्वरूप भव्य अवतरण हो जाता है |
मैं कर्मभूमि पर ईश्वरीय कार्य के लिए निमित्त बनकर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों का मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करने लगता हूँ | ज्ञात रहे कर्मभूमि पर देह में रहते हुए देह भाव से मुक्त हो जाना, विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बन जाना, अपने भीतर विधमान ईश्वरीय वैभव को जान लेना, निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जान लेना, ईश्वर के निर्गुण व सगुण स्वरूप को जान लेना, स्वयं की आत्मा से ज्ञान पाकर आत्मज्ञानी बन जाना इसी को सिद्धि प्राप्त करना कहते है| इस प्रकार मै से मुक्त हो जाने की क्रिया को ही जन्म-मरण से मुक्ति कहा गया है| इस क्रिया को मुक्ति मार्ग और मोक्ष मार्ग भी कहते है| यह ज्ञान मुझे अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म से मिला है जिसे मैंने अपनी अंतःप्रेरणा से पाया है| मुझे अब बाहरी जगत से भौतिक सुख की बिल्कुल भी चाह नहीं है| अब तो मानव-मात्र का कल्याण चाहता हूँ —
जग कल्याण की भावना लिए, तुम्हारी शरण मे आया हूँ ,
तुम मुझ में समझाओ, मैं तुम में समाझाऊँ |
धर्म अहिंसा विश्व धर्म हो, सब एक माने परमात्मा,
एक ही नाम रहे निराकार का, वो नाम तुम्हें दे जाऊंगा |
दोस्तों मैं जहाँ से यहाँ आया हूँ, एक दिन वहीं चला जाऊंगा |
दोस्तों कर्मफल सिद्धान्त को लेकर मैं स्वयं के जीवन के बारे में मानव जगत को कुछ खास बातें बता देना चाहता हूँ की कोई भी इंसान जन्म से नहीं निष्काम कर्म से महान बनता है और पापी से भी पापी महापापी साधारण से भी साधारण इंसान भी योग द्वारा ईश्वर को जान सकता है पा सकता है| आत्मज्ञानी बनकर अपनी अंतःप्रेरणा से अपने मानव जीवन को सार्थक बना सकता है| ज्ञात रहे मैं कोई धर्म गुरु, अवतारी महापुरुष, भगवान नहीं हूँ, मुझ में जो निराकार मेरे परम गुरुवर परमब्रह्म हृदयस्त विधमान है वो सृष्टि के सभी देवी देवताओं और सभी मनुष्यों में समान रूप से विधमान है, मैंने उस दिव्य महाशक्ति को जान लिया है मैंने उसे अपने भीतर पा लिया है और मेरी तरह मानव जगत का हर इंसान उस दिव्य महाशक्ति को जान सकता है पा सकता है और मेरी तरह हर इंसान अपने मानव जीवन को सार्थक बना सकता है|
दोस्तो कल मैं रहू या ना रहू कल्कि ज्ञान सागर इस कर्मभूमि पर सदा कायम रहेगा| अतः मानव जगत को मैं अपने बारे में कुछ खास बातें बता देना चाहता हूँ की कर्मभूमि पर मेरा जन्म सन 1960 में एक छोटे से गाँव में एक गरीब परिवार में होता है मेरी माता जी धार्मिक प्रवृति की थी इसलिए वो रात दिन ईश्वर की भक्ति में लिन रहती थी और बचपन से ही मुझे अपनी माता जी से सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म के संस्कार मिलते है| अपने जीवन संघर्ष में देखते ही देखते मेरा बचपन और मेरी जवानी मेरा साथ छोड़ जाते है, इस भरी दुनिया में जब कोई भी हमारा ना हुआ तो दर्द भरे जीवन की अर्द्धशताब्दी में मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और मैं पागल अवस्था में लग भग 1 वर्ष तक दर-दर की ठोकरे खाता रहता हूँ, इसी के साथ मेरे जीवन मे ईश्वरीय चमत्कार होता है और माँ शक्ति के आशीर्वाद से मुझे नया जीवन मिल जाता है|
जीवन भर त्रासदियाँ सहने के बावजूद भी मुसीबतें मेरा पीछा नहीं छोड़ती है और जीवन की अर्द्धशताब्दी में मेरे साथ बहुत बड़ी दुर्घटना घटित हो जाती है| इस विकट घडी में जब मैं मौत के करीब होता हूँ तब एक बार फिर ईश्वरीय चमत्कार होता है और जैन संत 108 श्री आचार्य रयण सागर जी के आशीर्वाद से मुझे नया जीवन मिलता है और इसी के साथ मुझे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है और मेरे दर्द भरे जीवन का भी अंत हो जाता है| इसी के साथ मैं ईश्वरीय कार्य के लिए निमित्त बनकर कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से मानव जगत के बीच ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना करने लगता हूँ| मैंने अपने दर्द भरे जीवन की की दास्ता अपने प्रभु को बताई थी आज मैं सम्पूर्ण मानव जगत को बता देना चाहता हूँ, ताकि हर इंसान अपने ही हृदयस्त ईश्वर को जान सके और मेरी तरह अपने ईश्वर के सामने अपना दर्द बयान कर सके और ईश्वर का आशीष पाकर अपने मानव जीवन को सार्थक बना सके| मेरे दिल की दर्द भरी दास्तां जो मैंने अपने हृद्स्त ईश्वर को सुनाई —
दर्द भरी दुनिया है, दुनिया है दास्तां, दास्ताने दुनिया की, किसको सुनाऊँ मैं
तेरी इस दुनियां से, दिल को लगाया मैंने, दिल को लगा के, दर्द बहुत पाया राम जी |
प्रभु से दुआ, किस बात की करेगे हम, हमने तो लिया नहीं, कभी प्रभु नाम भी |
जनम लिया तो, जग जननी हमें हे मिली, कोख में उसने, सुलाया हमें राम जी |
ममता की छाँव में, रमता ही रहा मैं , प्यार भरे झूले में, झुलाया हमें राम जी |
सबको मैं प्यारा था, मैया का दुलारा था, प्यार अपनो का बहू, पाया मैंने राम जी |
अपनो के प्यार के, सपने दिखा के मुझे, बचपन मेरा क्यों, चुराया मेरे राम जी ?
दर्द भरी दुनिया है, दुनिया है दास्तां, दास्ताने दुनिया की, किसको सुनाऊँ मैं
तेरी इस दुनियां से, दिल को लगाया मैंने, दिल को लगा के, दर्द बहुत पाया राम जी |
होश जो संवारा तो, बड़ा ही मदहोश था, अपनी सी दुनिया थी, नया नया जोश था |
जैसा चाहा वैसा किया, अपना ही दौर था, करनी का फल, फिर पाया मैंने राम जी|
हसीन दुनियाँ के, सपने दिखा के मुझे, हँसा के फिर क्यों रुलाया मेरे राम जी ?
दर्द भरी दुनिया है, दुनिया है दास्तां, दास्ताने दुनिया की, किसको सुनाऊँ मैं
तेरी इस दुनियां से, दिल को लगाया मैंने, दिल को लगा के, दर्द बहुत पाया राम जी |
ना धन से धनवान था , मैं तो एक नादान था, मुझको मुझ पे ना जरा भी गुमान था |
रंग भरी दुनियाँ के सपने दिखा के मुझे, दौलत का रंग क्यों लगाया मेरे राम जी ?
दर्द भरी दुनिया है, दुनिया है दास्तां, दास्ताने दुनिया की, किसको सुनाऊँ मैं
तेरी इस दुनियां से, दिल को लगाया मैंने,दिल को लगा के, दर्द बहुत पाया राम जी |
अब तो बतादो प्रभु , सजा किस बात की, देते रहते हो तुम, दिन और रात की |
मेरा क्या कसूर है, मुझको बताओ तुम, कर्मो का यह लेखा जोखा, अब तो मिटाओ तुम,
तेरी इस दुनिया से कुछ भी ना पाना है ,नाहीं मुझे लौट के, वापस ही आना है, जिन्दगी के सपने तो, बहुत दिखाये तूमने, मुक्ति का मार्ग, बतलाओ भगवान जी,
दर्द भरी दुनिया है, दुनिया है दास्तां, दास्ताने दुनिया की, किसको सुनाऊँ मैं
तेरी इस दुनियां से, दिल को लगाया मैंने,दिल को लगा के, दर्द बहुत पाया राम जी |
दोस्तों आपको आपकी अपनी इसी कल्कि ज्ञान सागर वेबसाइट पर कुछ समय बाद मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन की कर्म कहानी भी पढने को मिलेगी यही है जिंदगी जिसमे संपूर्ण मानव जगत को बताया जाएगा की धरती का हर इंसान राम, रहीम ,ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण ,कबीर,और वर्तमान के कल्कि साधक कैलाश मोहन की तरह आत्मस्वरूप, आत्मज्ञानी बनकर कर्मभूमि पर ईश्वरीय ज्ञान की प्रभावना करते हुये, अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सकता है| ज्ञात रहे युगो युगो से धरती पर ज्ञान गंगा बहती आई है किन्तु अब ज्ञान के सागर परम ज्ञानेश्वर गुरुओं के भी गुरु परम गुरुवर परमब्रह्म स्वयं पूर्ण प्रमाण के साथ विज्ञान के अनुसार कर्मभूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में कैलाश मोहन के निराकार हृदय में निराकार ज्ञान स्वरूप अवतरित होकर अपना कार्य कर रहे है, प्रभु परमब्रह्म सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को परम ज्ञानेश्वर बना देंगे |
ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा अपने परम माता पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म का स्वरूप है और सभी मनुष्यों की अंतरआत्मा परम गुरुवर परमब्रह्म स्वरूप है और दोनों महाशक्तियाँ मनुष्यों के हृदय में विधमान है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी का हृदय भक्ति मार्ग को अपनाकर सगुण परब्रह्म की भक्ति करता है, वो कर्मयोगी कर्मभूमि पर अपने सत्कर्म से स्वर्ग सुख को प्राप्त करता है| उसी प्रकार कर्मभूमि पर जो कर्मयोगी योग द्वारा ज्ञान मार्ग को अपनाकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूपता में निष्काम कर्मयोगी बनकर निष्काम कर्म करता है ऐसे कर्मयोगी को कर्मभूमि पर जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है| ज्ञात रहे सगुण परब्रह्म स्वर्ग सुख दाता है और निर्गुण परमब्रह्म मोक्ष दाता है|
मानव के भीतर निर्गुण आत्मा में निर्गुण परमब्रह्म का वास होता है, जिसे ईश्वर कह सकते है और निष्काम कर्मयोगी के भीतर मनुष्य रूपी सगुण जीवात्मा में सगुण परब्रह्म का वास होता है जिसे अवतार कह सकते है| ज्ञात रहे कभी किसी मनुष्य का नश्वर भौतिक शरीर अवतार और ईश्वर नहीं बन सकता, क्योंकि ईश्वर का ज्ञानस्वरूप भव्य अवतरण मनुष्य की निर्गुण आत्मा में में होता है और अवतार स्वरूप सगुण परब्रह्म का अवतरण सगुण जीवात्मा के भीतर होता है | अतः कर्मयोगी का नश्वर भौतिक शरीर कभी अवतार ईश्वर नहीं बन सकता| कर्मयोगी के नश्वर भौतिक शरीर को अवतार और ईश्वर मानकर उनकी मूर्तियाँ बनाकर पूजना मूढ़ बुद्धि के लोगों की देन है| मानव-मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है| अतः कल्कि ज्ञान सागर 21वी सदी में सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव-मात्र को ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करवा देगा | जय अहिंसा , ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|