ईश्वर और धर्म दोनों ही मानव के भीतर हृदयस्त विधमान है वो बाहर नहीं मिल सकते…

ईश्वर और धर्म दोनों ही मनुष्यों के भीतर हृदयस्त विधमान है          वो बाहर धार्मिक स्थलों में नहीं मिल सकते|         जब मानव जीवन ही कर्म प्रधान है, तो बिना सत्कर्म किए धार्मिक स्थलों में जाकर भी मानव को क्या मिल सकता है?

||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||

सत्य हमेशा कड़वा होता है, किन्तु सत्य ही ईश्वर का प्रतीक है जो हमेशा इंसान का भला ही करता है बुरा नहीं| ज्ञात रहे बीमार इंसान को कड़वी दवाईयां इसलिए दि जाती है क्योंकि वो कड़वी दवाइयाँ उस इंसान के लिए लाभदायक होती है, वो कड़वी दवाइयाँ उस इंसान का फायदा ही करती है नुकसान नहीं| हमारा और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान का मकसद ईश्वरीय संदेशानुसार मानव जगत को सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म का सत्य मार्ग बताना है| किसी भी इंसान की आस्था के साथ खिलवाड़ करना या किसी धर्म-संप्रदाय के लोगो के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं है|

ज्ञात रहे मैं ना तो किसी धर्म-संप्रदाय का संत-महात्मा हूँ, नही ईश्वर का अवतार, नहीं मैं धर्मग्रंथो का ज्ञाता हूँ और नहीं मेरा कोई संसारी धर्म गुरु है| मैं आपकी तरह ही गृहस्थ जीवन वाला एक साधारण इंसान हूँ| ज्ञात रहे कोई भी इंसान जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है, जो ईश्वरीय कार्य मैं कर रहा हूँ वही कार्य धरती का कोई भी इंसान ईश्वर का साधक बनकर ईश्वर से योग लगाकर ज्ञान प्राप्त कर सकता है| मुझ कल्कि साधक कैलाश मोहन की तरह निष्काम कर्मयोगी बनकर मानव जगत के हितार्थ कार्य कर सकता है| मैं एक निष्काम कर्मयोगी हूँ, अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म से मिली अंतःप्रेरणानुसार सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जगत के बीच ईश्वरीय संदेश पहुँचाने का कार्य कर रहा हूँ|

मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत से करबद्ध निवेदन करता हूँ कि मेरे द्वारा अपनी अंतःप्रेरणानुसार कल्कि ज्ञान सागर में बताई गई आध्यात्मिक ज्ञान की बातों का किसी धर्म-संप्रदाय से सम्बन्ध नहीं है, यह ईश्वरीय ज्ञान सम्पूर्ण मानव जगत के लिए मानव-मात्र के हितार्थ है| अतः कल्कि ज्ञान सागर में बताई गई आध्यात्मिक ज्ञान की बातों में आपके हृदय को जो सही लगे आप उसे ग्रहण करे अन्य को त्याग दे|

ज्ञात रहे ईश्वर मानव को कर्म करने का ज्ञान दे सकता है, किसी भी इंसान से निर्धारित कर्म नही करवा सकता| क्योंकि मनुष्यों का जीवन ही कर्म प्रधान है ज्ञात रहे मानव कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं| अतः जब तक इंसान कर्मयोगी नहीं बन जाता, जब तक इंसान के भीतर के द्वार नहीं खुल जाते, जब तक इंसान का अपने हृदयस्त ईश्वर से आत्म मिलन नहीं हो जाता, तब तक इंसान के दिल में दया और सेवा के भाव जागृत नहीं हो सकते| कर्मभूमि पर करुणा रहित पत्थर दिल इंसान कभी सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म के मार्ग पर नहीं चल सकता| अतः सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वर का संदेश…..

जब तक पत्थर दिल है तू इंसान,
पत्थर में परमात्मा को कैसे पाएगा?
एक बार तू विराट आत्मस्वरूप तो बनकर देख,
तीन लोको का स्वामी तू भी बन जाएगा|

युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को धर्म और ईश्वर के नाम पर जाति, धर्म-संप्रदाय व अनेक प्रकार की रूढ़िवादीयों को त्यागकर, सत्कर्म और सेवा रूपी मानव-धर्म का पालन करना होगा| कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को निर्गुण परमब्रह्म द्वारा बताए गए सदमार्ग पर चलते हुए, अपने हृदयस्त निर्गुण परमब्रह्म को अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, गॉड नहीं उस ज्ञान के दातार को अपना परम गुरुवर मानना होगा|

आज के विकास के युग में युगानुसार मानव चेतना की जो मिसाल कायम हो रही है उसे देखते हुए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को अपनी धार्मिक सोच को बदलना होगा| मानव धर्म और ईश्वर को अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्मग्रंथ, जाति, पंत, संत-संप्रदाय से मुक्त कराना होगा| क्योंकि इसी कारण धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि बढने लगी है| आज धरती पर पाप का बोझ अत्यधिक बढ़ चूका है, मानव जगत के सत्कर्म ही कलयुग को सतयुग में परिणित कर सकते है, कर्मभूमि पर मानव जगत के सत्कर्म ही सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपनी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| 

ज्ञात रहे राम और कृष्ण ने साधू-संत बनकर नहीं, अपने गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए, अपने घर-परिवार में रहते हुए धरती पर धर्म की प्रभावना की थी| ज्ञात रहे धरती पर ईश्वरीय आध्यात्मिक ज्ञान की प्रभावना करने के लिए साधू-संत बनना जरूरी नहीं है इस सत्य को सिद्ध करने के लिए ही आज के विकास के युग में निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म एक गृहस्थ इंसान के हृदय में कल्कि ज्ञान सागरके रूप में ज्ञानस्वरूप अवतरित हुए है, वो सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को देवी-देवता तुल्य परम ज्ञानेश्वर बना देंगे| 

ज्ञात रहे सदियों पहले आगम में बता दिया गया था की कलयुग में मानव जगत को धर्म का उपदेश देने वाले अधिकतर साधू-संत स्वयं धर्म का पालन नहीं करेंगे| आज हम देख भी रहे है कई माया प्रेमी संत कथावाचक बनकर भगवान के भक्तों से लाखो रुपैया वसूलने लगे है, ईश्वरीय ज्ञान और धार्मिक स्थलो को व्यावसायिक बना दिया गया है| और तो और आए दिन कई साधू-संतो द्वारा मासूम बच्चियो के साथ धार्मिक स्थलो में दुष्टचार भी होने लगे है|  याद रहे कालदोष के कारण ही धर्म के रक्षक धर्म के भक्षक बन गए है अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल आज धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि का कारण बन गए है| किन्तु ज्ञात रहे…

कबीर कुआ एक ही है, पानी भरे अनेक,
                           घड़े घड़े का भेद है, पानी सब मे एक|                                              हम मानव होकर भी, मंदिर और मस्जिद के लिए लड़ बैठे,               अरे हम से तो परिंदे ही अच्छे, जो कभी मंदिर तो कभी मस्जिद पर जा बैठे|

ज्ञात रहे सदियो पहले हमारे पूर्वजो द्वारा धरती पर धार्मिक स्थलो का निर्माण इसलिए किया गया था की घरो में संसारी गतिविधियो के कारण घर का वातावरण अशांत रहता है अतः इंसान एकांतवास में शांत जगह पर बैठकर अपनी आत्मस्वरूपता को जान सके अपने हृदयस्त निराकार अल्लाह, ईश्वर, प्रभु ,परमेश्वर परम गुरुवर परमब्रह्म की इबादत आराधना कर सके | हमारे पूर्वजो द्वारा धार्मिक स्थलो के साथ सामाजिक संप्रदाय इसलिए बनाए गए ताकि समाज के सभी लोग मिलकर उन धार्मिक स्थलो के माध्यम से धन का संग्रह कर असहाय लोगों की सहायता कर सके| मानव सत्कर्म और सेवा रूपी मानव-धर्म का पालन करते हुए अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सके|

आज कालदोष के कारण अज्ञानतावश कुछ लोगों ने उन धार्मिक स्थलो में अनेक प्रकार के देवी-देवताओं की अवतारी महापुरुषों की अपने धर्म-गुरुओ की मूर्तिया बनाकर स्थापित कर दी और धर्म व ईश्वर के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्म ग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय बनाकर धार्मिक मान्यता को लेकर विश्व मानव परिवार के टुकड़े-टुकड़े कर दिये| कई अधर्मी लोगों ने साधुओ के वेश में धार्मिक स्थलो को भी पैसा कमाने का साधन बना दिया, जिसके कारण धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ने लगी है| ज्ञात रहे धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाने के कारण कभी-भी महाविनाश होकर, मानव जाति का नामों निशान मिट सकता है| 

ज्ञात रहे निराकार कभी साकार प्रकट नहीं होता, नहीं निराकार का कोई घर होता है| अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से निराकार अल्लाह, ईश्वर, प्रभु ,परमेश्वर परम गुरुवर परमब्रह्म का संपूर्ण मानव जगत के नाम संदेश है, मैं निराकार हूँ और मानव-मात्र के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूपसगुण जीवात्मस्वरूप में हृदयस्त विधमान रहता हूँ, मैं तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हूँ, तुमने मेरे निवास के लिए धार्मिक स्थल बनाकर मुझे क्यों अपने आपसे दूर कर दिया है…

किसी के मन मे आया, तो में मंदिर बन गया,
मुसलमानो की जिद पर, मैं मस्जिद बन गया|
विश्व गुरु, वाहे गुरु बनकर, गुरुद्वारे में कैद हूँ,
और बार-बार गिरने के लिए, मैं गिरजा घर बन गया|

हे मानव जगत के लोगों आप ही बताओं आप किस रूप में मेरा सम्मान करते हो? आज धरती पर लाखों धार्मिक स्थल है, करोड़ो साधु-संत भी भ्रमण कर रहे है, धर्म ग्रंथो की भी कोई कमी नहीं है, फिर भी धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि निरंतर बढती जा रही है क्यों? जो देश कभी विश्व धर्म गुरु और आध्यात्मिक देश के नाम से विश्व विख्यात था, क्यों आज विश्व की सबसे बड़ी मांस की मंडी के रूप में जाना जाता है? विश्व को अहिंसा का सन्देश देने वाला एक आध्यात्मिक देश प्रतिदिन लाखों निर्दोष पशुओ की हत्या करवाकर महापाप के कार्य कर रहा है क्यों? जो देश सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वरीय ज्ञान देता था वो आज विश्व मानव परिवार को मांस खिलाकर मनुष्यों में तामसिक प्रवृतिया पैदा कर रहा है क्यों ? क्या एक हिंसक देश पुनः विश्व धर्म गुरु बन सकता है?

आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में धरती पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोग धर्म के नाम पर अधर्म के मार्ग पर चल रहे है, अपने निराकार अजर-अमर, अविनाशी ईश्वर के नाम पर इंसानों के नश्वर शरीर की पूजा कर रहे है| निराकार अल्लाह ईश्वर प्रभु ,परमेश्वर परम गुरुवर परमब्रह्म का कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से संपूर्ण मानव जगत के नाम संदेश है की धरती का हर इंसान चलता फिरता तीर्थ है, चलता फिरता धार्मिक स्थल है, जिनके हृदय में निराकार ईश्वर ज्ञानस्वरूप विधमान है| ज्ञात रहे ईश्वर निराकार है और निराकार ईश्वर का निवास मानव के भीतर हृदय में है| भला वो मानव निर्मित धार्मिक स्थलो और पत्थरो की मूर्तियो में कैसे मिल सकता है? निराकार ईश्वर की सेवा करनी है तो जिंदा, बेसहारा, अभावग्रस्त लोगों की सेवा करो, सृष्टि के बेजुबान जीव-जीवात्माओं की सेवा करो, बेजान पत्थरो की नहीं| तुम धर्म कमाने के लिए जितना धन धार्मिक स्थलो में जाकर खर्च कर रहे हो वो कुछ चंद लोगो की कमाई बन जाता है और तुम्हारा समय और धन दोनों व्यर्थ चला जाता है, क्योंकि तुम अपने हृदयस्त साथी को अपने परम हितेशी परमब्रह्म को बाहर ढूंढ रहे हो, ईश्वर का सम्पूर्ण मानव जगत के नाम सन्देश…..

ना मंदिर में, ना मस्जिद में, नहीं गिरजा, गुरुद्वारे में,
ना तीर्थों में, ना मठो में , नहीं कमल, ना काबे में |
ना पत्थर में, ना पानी में, नहीं धरती के, कण-कण में ,
आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो मुझको जन-जन में|

दोस्तो सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वर का संदेश है धरती का हर मनुष्य देवी-देवता तुल्य है धरती का हर मनुष्य राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बौद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण, कबीर की तरह योग द्वारा अपने हृदयस्त परम गुरुवर परमब्रह्म को जानकर अपनी अंतर प्रेरणा से धरती पर धर्म की प्रभावना करते हुये अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण कर सकता है|

ज्ञात रहे ईश्वर ने मनुष्य रूपी जीवात्माओं को कर्मभूमि पर आत्मकल्याण करने के लिए, कर्म करने के लिए प्रकृति के पंचतत्वो से बना भौतिक शरीर प्रदान किया है, किन्तु कालदोष के कारण मनुष्यों ने निराकार रहम दिल वाले ईश्वर को पत्थर का रूप दे दिया| अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म का संपूर्ण मानव जगत के नाम संदेश है मैं अनादी, निष्कलंक, निराकार, अनामी ज्ञान आत्मशक्ति स्वरूप हूँ, मैं  तुम्हारे भीतर हृदयस्त विधमान रहता हूँ, मुझ अनामी को मानव जगत के लोगों ने अज्ञानतावश अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड जैसे नाम दे दिये है| ज्ञात रहे मैं तो तुम्हारा जन्मों-जन्मों का साथी हूँ, तुम्हारा परम हितेषी बनकर तुम्हारे हर जन्म में आत्मस्वरूपता में, मैं हर पल तुम्हारे साथ रहता हूँ| ज्ञात रहे ईश्वर और धर्म दोनों हृदयस्त है ये बाहर कही भी नहीं मिल सकते अतः कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म का संपूर्ण मानव जगत के नाम संदेश है…. 

तुम भूलकर भगवान को, अब मत पूजो पाषाण को,
तेरा प्रभु तो तूझ में बसा है, अब मत पूजो नश्वर इंसान को |
बंद कर दो मंदिरो के दरवाजे, और नमाज भी पढ़ना छोड़ दो,
अगर अब भी मेरी नहीं मानते, तो मुझको ही मानना छोड़ दो|

दोस्तो कालदोष के कारण ही एक ही निराकार दिव्य परम महाशक्ति को, अजन्मे परम गुरुवर परमब्रह्म को मानव जगत के लोग अज्ञानतावश अनेक नाम देकर स्वयं को धर्म और ईश्वर के नाम पर भ्रमित कर, अपने अमूल्य मानव जीवन को भी नष्ट कर रहा है| अतः ईश्वरीय संदेशानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को सुंदर सृष्टि के रचियता अपने परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म को नमन करते हुए, सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी अपने हृदयस्त निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म की इबादत आराधना करना चाहिए| परम गुरुवर परमब्रह्म द्वारा कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से बताए गए आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए अपने मंगलमय जीवन के साथ अपना आत्मकल्याण करना चाहिए| एक को जानो एक को मानो अपना अमूल्य मानव जीवन सार्थक बनाओ| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति,  सत्यमेव जयते|

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