कर्मभूमि पर मानव का नश्वर शरीर कभी भगवान नहीं बन सकता
तो फिर धार्मिक स्थलों में कर्मयोगी के नश्वर तन की पूजा क्यों ?
निराकार दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म का कर्मभूमि पर जन्म-मरण नहीं,
निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञान व आत्म-शक्ति स्वरूप भव्य अवतरण होता है |
ज्ञात रहे कल्कि ज्ञान सागर कर्मभूमि पर सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक आस्था का सम्मान करता है, हमारा मकसद किसी धर्म प्रेमी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाना या किसी धर्म सम्प्रदाय की निंदा करना, किसी का धर्म परिवर्तन करवाना नहीं है| मै कल्कि साधक कैलाश मोहन अपनी अंतःप्रेरणानुसार कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, मानव को निराकार दिव्य महाशक्ति व मानव के स्वयं का सत्यस्वरूप बताकर युगानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को ईश्वर व अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त करवाने के लिए दिव्य महाशक्ति के संदेशानुसार कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से दिव्य महाशक्ति के सन्देश जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास करता रहा हूँ|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार, कर्मभूमि पर जन्म लेने वाले राम, कृष्ण, बौद्ध, महावीर ये सभी कर्मयोगी हमारी तरह इन्सान थे, जिन्होंने निष्काम कर्मयोगी बनकर सर्वोच्च मार्ग पर चलकर अपने भीतर विद्यमान दिव्य महाशक्ति को जाना, अपने ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर अपना मानव जीवन सार्थक बनाया| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर राम, कृष्ण, बौद्ध, महावीर की तरह हर कर्मयोगी इंसान साधना के माध्यम से अपने भीतर विद्यमान दिव्य महाशक्ति को जानकर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है|
कर्मभूमि पर मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव जन्म से नहीं सत्कर्म, निष्काम कर्म से महान बनता है| कर्मभूमि पर प्रकृति के पंचतत्वों से बना मानव का भौतिक शरीर मनुष्यरूपी जीवात्मा के लिए एक रथ के सामान है| अतः मानव का नश्वर तन कर्मभूमि पर कर्ता कभी बन ही नहीं सकता तो भगवान कैसे बन सकता है? कर्ता तो भीतर सगुण जीवात्मा व निर्गुण आत्मा होती है, जिन्हें हम सगुण परब्रह्म व निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप कह सकते है, इस प्रकार वही दिव्य महाशक्ति सृष्टि में कर्ता, भरता, हरता बनी हुई है| ज्ञात रहे सृष्टि में मानव का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है तो वो भगवान कैसे बन सकता है और भगवान के नाम पर उन कर्मयोगियों के नश्वर तन की पाषण की मूर्ति बनाकर पूजा करने से मानव का मानव जीवन कैसे सार्थक हो सकता है ???
जब तक पत्थर दिल है तू इंसान,
पत्थर में परमात्मा को कैसे पाएगा ?
एक बार आत्मस्वरूप बनकर तु देख,
तीन लोक का वैभव तू अपने ही भीतर पाएगा|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार ना तो राम-कृष्ण,कबीर के भौतिक शरीर भगवान थे और नहीं महावीर-बुद्ध के भौतिक शरीर भगवान थे| मानव का नश्वर भौतिक शरीर प्रकृति के पंचतत्वों से बना होता है और जब उसका तन परिवर्तन होता है तो उसका पुराना तन पुनः प्रकृति के पंचतत्वों में लीन हो जाता है| ज्ञात रहे सृष्टि में सभी देवी-देवता मानव व सभी जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, इन सभी जीव-जीवात्माओं के भौतिक शरीर प्रकृति के अलग-अलग तत्वों से बने होते है, जिनके भीतर जीव-जीवात्मा के रूप में सगुण परब्रह्म विधमान रहते है| सनातन धर्म में भी 24 अवतार हरि विष्णु के माने गये है, तो भला फिर जो राम है वही कृष्ण हुआ और जो राम-कृष्ण हुए वो तो हरि विष्णु के मायावी रूप थे | ज्ञात रहे हरि विष्णु भी शिव का मायावी रूप है, तो कर्ता, भरता, हरता या अवतार तीर्थंकर पैगाम्बर एक शिव ही तो है, जिन्हें परब्रह्म कहते है| पूर्ण ज्ञान के अभाव में एक को नहीं जानकर अनेक की पूजा करने से मानव जीवन कैसे सार्थक हो सकता है?
सम्पूर्ण मानव जगत के लोग कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी को ईश्वर का अवतार, तीर्थंकर, पैगाम्बर मानते है, अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार उन सभी कर्मयोगियों का कर्मभूमि पर जन्म एक कर्मयोगी के रूप में होता है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर कोई भी कर्मयोगी जन्म से नहीं सत्कर्म, निष्काम कर्म से महान बनता है और कर्म करने वाला मनुष्यरूपी जीवात्मा कर्मयोगी के नश्वर भौतिक शरीर के भीतर रहता है| जब कर्मयोगी के भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा एकाकार हो जाते है, उस कर्मयोगी के भीतर निर्गुण-सगुण का भेद मिट जाता है, तब उसके भीतर दिव्य महाशक्ति का प्राकट्य होकर वो दिव्य महाशक्ति सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान देती है|
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देने वाली दिव्य महाशक्ति का प्राकट्य मानव तन के भीतर होता है तो भला मानव का नश्वर भौतिक शरीर अवतार, तीर्थंकर, पैगाम्बर, भगवान व प्रभु का पुत्र कैसे माना जा सकता है? जबकी इंसान का नश्वर भौतिक शरीर मनुष्य रुपी जीवात्मा के लिए एक रथ के समान होता है, जिस पर मनुष्य रूपी जीवात्मा सवार होकर कर्मभूमि पर कर्म करता है| कर्मयोगी के भौतिक शरीर के भीतर सगुण परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में और निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरुप में हृदयस्त विधमान रहते है| आज सम्पूर्ण मानव जगत पूर्ण ज्ञान के अभाव में उस दिव्य महाशक्ति को अज्ञानतावश बाहर ढूंढ रहां है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के नाम निर्गुण परमब्रह्म का सन्देश….
अल्लाह ईश्वर कहते हो मुझको,
और कहते हो प्रभु परमात्मा |
अरे मुझ में तुझ में बस फर्क है इतना,
तूम सगुण जीवात्मस्वरूप हो मेरा
और मैं हूँ तुम्हारी पवित्र निर्गुण आत्मा ||
अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एक ही दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म के दो स्वरूप दो चरित्र है और वो अपने दोनों स्वरूप में मानव के नश्वर भौतिक शरीर के भीतर सगुण जीवात्मस्वरूप व निर्गुण आत्मस्वरूप में विधमान रहता है| उस दिव्य महाशक्ति को मानव कर्मभूमि पर अपनी भौतिक दृष्टि से नहीं देख सकता| मानव जगत के लोगों ने अज्ञानतावश निर्गुण निराकार को सगुण साकार मानकर उसके नाम पर कर्मभूमि पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल बना दिए और अविनाशी की साधना को भुलाकर नश्वरता की पूजा करने में लगे है| आज सम्पूर्ण मानव जगत के लोग ईश्वर व धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय बनाकर आपस में लड़ रहे है| धर्म के नाम पर अज्ञानतावश मानव, मानव का दुश्मन बनता जा रहा है, धर्म के नाम पर खून खराबा भी होने लगा है, जिसके कारण आज कर्मभूमि पर धर्म के प्रति ग्लानी बढकर महाविनाश की संभावनाएं नजर आने लगी है| ज्ञात रहे निराकार का सत्यस्वरूप ज्ञान और शक्ति स्वरूप है वो आत्मस्वरूपता मैं सभी मनुष्यों के भीतर विधमान रहता है, उसे बाहर धार्मिक स्थलो में ढूँढने से आपका मानव जीवन कैसे सार्थक हो सकता है? सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के नाम दिव्य महाशक्ति परमब्रह्म का सन्देश…..
न मंदिर में न मस्जिद में, नहीं गिरजा गुरुद्वारे में,
न तीर्थों में न मठो में, नहीं कमल ना काबे में|
न पत्थर में न पानी में, नहीं धरती के कण-कण में,
आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो मुझको जन-जन में|
निराकार परमब्रह्म का जनम मरण नहीं किसी निष्काम कर्मयोगी के हृदय में ज्ञान व शक्ति स्वरूप भव्य अवतरण होता है, जो निराकार है वो निराकार रहकर ही किसी निष्काम कर्मयोगी के तन का सहारा लेकर अपना कार्य करता है| निराकार परमब्रह्म का सत्यस्वरूप ज्ञान और विज्ञान स्वरूप है जो मानव के हृदय में विधमान रहकर मानव जगत को जीवन यापन के लिए विज्ञान के माध्यम से विकास और ज्ञान के माध्यम से मानव को मंगलमय जीवन के साथ आत्मकल्याण करने का मार्ग बताते है|
परमब्रह्म मानव जगत को जिन कर्मयोगीयों के माध्यम से विकास प्रदान करवाते है, हम उन कर्मयोगियों को वैज्ञानिक कहते है| जिन निष्काम कर्मयोगी के माध्यम से वो सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कराते है, उन कर्मयोगियों को हम मानव जगत के लोग अवतार, तीर्थंकर, पैगाम्बर, भगवान, ईश्वर, प्रभु मान लेते है| जबकि हमें उन कर्मयोगियों को अपना विश्व धर्म गुरु मानना चाहिए , किन्तु मानव जगत के लोग अज्ञानतावश उन कर्मयोगियों के नश्वर भौतिक शरीर को भगवान मान लेते है| अब वक्त आ गया है युगानुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को सत्यवादी बनकर सत्य के साथ चलने के लिए असत्य धारणाओं का रुढ़िवादियो का त्याग करना होगा| युगानुसार कल्कि ज्ञान सागर सम्पूर्ण मानव जगत को सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनाकर कलयुग का नाश कर सतयुगी दुनिया का सृजन करेगा| अतः सतयुगी दुनिया के सृजन के लिए सम्पूर्ण मानव जगत को युगानुसार सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनना होगा |
जय अहिंसा ,विश्व शांति, सत्यमेव जयते |