आज के विज्ञान के युग में ईश्वरीय चमत्कार वैज्ञानिक के बताये अनुसार धरती पर आया नवीन विश्व धर्म…

 कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश 

दोस्तों आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज के विकास के युग में भी हो चूका है कुदरत का करिश्मा, सन 2018 में धार्मिक संस्थान ब्रह्माकुमारीं द्वारा मानव जगत के भविष्य पर चिंतन करने के लिए विश्व वैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन रखा गया, उसमें एक वैज्ञानिक ने बताया आज के विकास के युग में मानव चेतना की जो मिशाल कायम हो रही है, उसे देखते हुए मानव जगत के लोगों में सबसे पहले जिस बदलाव की जरुरत है, वो है युगानुसार मानव की धार्मिक सोच में बदलाव| वैज्ञानिक ने बताया धरती एक नवीन विश्व धर्म आने वाला है, मैं उस धर्म का नाम तो नहीं जानता पर वो धर्म मानव जगत के लोगों को देवी-देवता तुल्य बना देगा| वैज्ञानिक के बताये अनुसार धरती पर 31 दिसम्बर 2016 रात्रि 12 बजे कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना के साथ ही धरती पर एक नया विश्व धर्म अस्तित्व में आ चूका है|

ज्ञात रहे परमात्मा कर्मभूमि पर धर्म की रक्षा, स्थापना व प्रभावना के कार्य किसी न किसी निष्काम कर्मयोगी को नीमित्त बनाकर ही करता है| उदहारण के लिए आप देख सकते है, एक तरफ मानव जगत को ईश्वर और धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के जाति, पंत, संत, संप्रदाय, धर्म ग्रन्थ और धार्मिक स्थलों से मुक्त करवाने के लिए एक गृहस्थ जीवन वाले साधारण इंसान को नीमित्त बनाकर भारत की पावन भूमि पर वीरो की भूमि राजस्थान प्रान्त के आध्यात्मिक वागड़ अंचल में लोढ़ी काशी के नाम से विश्व विख्यात धर्म नगरी बांसवाडा शहर में 31 दिसम्बर 2016 रात्रि 12 सर्वधर्म समाज के सैकड़ो गणमान्य नागरिक व हजारो धर्म प्रेमियों के बीच जाति, पंत, संत, संप्रदाय, धर्म ग्रन्थ और धार्मिक स्थल रहित सत्कर्म और सेवा रुपी विश्व मानव धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म की स्थापना करवा देना और स्थापना के बाद एक वैज्ञानिक को निमित्त बनाकर नवीन विश्व धर्म के बारे मे मानव जगत के लोगो को अवगत करा देना, ये कुदरती करिश्मा नहीं तो और क्या है? इस सत्य को जानने के लिए आप इस पोस्ट के अंत में दोनों समाचार पत्र पढ़ सकते है|

युगानुसार कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, ईश्वरीय संदेश मानव जगत तक पहुँचाने के लिए हम और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान निमित्त मात्र है मैं ही नहीं इस धरती पर हर इंसान हर जीव व जीवात्मा उस निराकार परम महाशक्ति के अधीन है जो आत्मस्वरुपता में सभी मनुष्यों के हृदय में सदैव विधमान रहते है, जिनके कारण विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति होकर सुंदर सृष्टि का सृजन हुआ|

मैं कल्कि साधक कैलाश मोहन सम्पूर्ण मानव जगत की जानकारी के लिए बता देना चाहता हूँ कि इस कर्मभूमि पर इंसान का नश्वर भौतिक शरीर मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए एक रथ के समान है, जिसके माध्यम से मनुष्य रूपी जीवात्मा इस कर्मभूमि पर भ्रमण करते हुए कर्म करता है| कर्मभूमि पर जीतने भी निष्काम कर्मयोगी, संत-महात्मा, धर्मगुरु हुए है, उन सभी के हृदय में एक परम गुरुवर परमब्रह्म ही ज्ञानस्वरूप अवतरित होकर मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देते आये है| ये अलग बात है की आज कालदोष के कारण कई साधू-संत संसारी इंसान से भी ज्यादा मायावी और वासना के अधीन होते जा रहे है, वो मानव जगत को भला क्या ज्ञान देंगे?

युगानुसार युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, मानव धर्म और ईश्वर को जाति, पंत, संत, संप्रदाय, अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल और धर्म ग्रंथो से मुक्त कराने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्त्व व दिव्यता जागृत कर मानव-मात्र को देवी-देवता तुल्य बनाने के लिए परम गुरुवर प्रभु परमब्रह्म स्वयं कर्मभूमि पर कल्कि ज्ञान सागर के रूप में ज्ञानस्वरूप अवतरित होकर युगानुसार नेट, मोबाईल, कंप्यूटर, लेपटॉप के माध्यम से सोशल मीडिया पर सतयुगी धर्म की अनेक हाथो से प्रभावना करवा रहे है|

कल्कि ज्ञान सागर का सन्देश स्वयं के विराट आत्मस्वरूप को जानो, अपने भीतर के विशाल ईश्वरीय वैभव को जानों, ईश्वर एक है किन्तु उसके दो स्वरूप दो चरित्र है| कर्मभूमि पर मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है मानव परमात्मा स्वरूप नहीं परमात्मा का ही रूप है| जिस कर्मयोगी ने अपने भीतर निर्गुण आत्मा व सगुण जीवात्मा के भेद को जाना, एक ही सर्वशक्तिमान दिव्यशक्ति जाना, उसी एक को अपना परम हितेषी माना, उस कर्मयोगी का कर्मभूमि पर मानव जीवन सार्थक हो गया|

ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव-मात्र के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूपसगुण जीवात्मस्वरुप दोनों रूप में विधमान है| सगुण जीवात्मस्वरुप में ईश्वर ही कर्मयोगी है, उस कर्मयोगी को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए निर्गुण आत्मस्वरूप में निर्गुण ईश्वर विद्यमान है, एक को जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ| कर्मभूमि पर साधारण से साधारण इन्सान भी अपने भीतर विधमान परम गुरुवर परमब्रह्म का साधक बनकर प्रभु से योग लगाकर कर्म करने का ज्ञान अर्जित कर सकता है|आत्मज्ञानी कर्मयोगी सत्कर्मी बनकर कर्मभूमि पर स्वर्ग-सुख का आनंद लेते हुए, विराट आत्मस्वरूप में निष्काम कर्मयोगी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है| कर्मभूमि पर जिसने ईश्वर के निर्गुण-सगुण, आत्मा-जीवात्मा, सत-असत के भेद को जाना, उसका मानव जीवन सार्थक हो गया… जय अहिंसा ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते| 

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