अयोध्या में विश्व-धर्म गुरुकुल बनाकर सम्पूर्ण मानव जगत को धार्मिक एकता का सन्देश दिया जा सकता है…

|| कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश ||

कर्मभूमि पर वर्तमान समय युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग का समय चल रहा है| युग परिवर्तन की संधिवेला संगमयुग में कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए, हम ईश्वरीय संदेशानुसार युगानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देना चाहते है| आगे बढने से पहले हम सम्पूर्ण मानव जगत को बताना चाहते है, हम और हमारी संस्था अहिंसा परमोधर्म मानव सेवा संस्थान कर्मभूमि पर सभी धर्म संप्रदाय के लोगों का तहेदिल से सम्मान करते है| हमारा मकसद कर्मभूमि पर किसी भी कर्मयोगी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है| 

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण, कबीर ये सभी कर्मयोगी कर्मभूमि पर मायावी सगुण जीवात्मस्वरूप में भौतिक शरीर के रूप में भिन्न-भिन्न हो सकते है, किन्तु निर्गुण आत्मस्वरूप में सभी एक समान है| ज्ञात रहे ईश्वर एक है किन्तु उसके दो स्वरूप, दो चरित्र है, जो निर्गुण स्वरूप में अनादी, अजन्मा, परम सत्य, अजर-अमर, अविनाशी है, वहीं मायावी सगुण स्वरूप में सत-असत, अविनाशी होकर भी परिवर्तनशील है| कर्मभूमि पर ईश्वर अपने दोनों स्वरूप में कर्मयोगियो के भीतर सगुण परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में निर्गुण परमब्रह्म आत्मस्वरूप में विद्यमान रहते है|

ज्ञात रहे रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय खेल में सगुण परब्रह्म एक होकर भी सृष्टि के विस्तार के लिए, मायावी सृष्टि में 84 लाख योनियों के जीव-जीवात्मा के रूप में कर्मभूमि पर भ्रमण कर रहे है| सृष्टि का छोटे से छोटा जीव सगुण परमात्मा परब्रह्म स्वरूप है, अतः सृष्टि के किसी भी जीव की अकारण हिंसा करना महापाप है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का मायावी सगुण स्वरूप है, जिन्हें हम सगुण परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कह सकते है| कर्मभूमि पर मानव परमात्मा स्वरूप नहीं, साक्षात परमात्मा सगुण परब्रह्म का ही रूप है| सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को उनका अपना सत्यस्वरूप व ईश्वर का सत्यस्वरूप बताकर भक्ति मार्ग में एक सगुण परब्रह्म की पूजा व ज्ञानमार्ग में निर्गुण परमब्रह्म की साधना करने का सन्देश देना चाहते है| 

सनातन धर्म की मान्यतानुसार सगुण परब्रह्म शिव-शक्ति के प्रतिक शिवलिंग के दर्शन करने से कर्मभूमि पर सभी तीर्थो के, सभी देवी-देवताओं के दर्शन हो जाते है, एक शिवलिंग की पूजा करने से सृष्टि के सभी तीर्थो की, सभी देवी-देवताओ की पूजा हो जाती है| अतः हम रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को ईश्वरीय सन्देश देना चाहते है, एक को जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ|

कालदोष के कारण कर्मभूमि पर अज्ञानतावश धर्म और ईश्वर के नाम पर बने अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय, धर्म ग्रंथ और धार्मिक स्थलो से हम सम्पूर्ण मानव जगत को मुक्त कराना चाहते है| दिव्य महाशक्ति के संदेशानुसार हम कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में देवत्व व दिव्यता जागृत कर मानव-मात्र को देवी-देवता तुल्य बनाकर मानव जगत को युगानुसार ईश्वर और अवतारवाद की धारणाओं से मुक्त कराना चाहते है| मानव-मात्र को उनके स्वयं के विराट आत्मस्वरूप से अवगत कराकर, मानव-मात्र को आत्मज्ञानी बनाकर सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी बनाना चाहते है|

भूलकर भगवान को, अब मत पूजो नश्वर इंसान को|
तेरा प्रभु तो तुझ में बसा है, अब मत पूजो पाषाण को|
बंद कर दो मंदिरो के दरवाजे , और नमाज भी पढ़ना छोड़ दो |
अगर अब भी मेरी नहीं मानते हो, तो फिर मुझको मानना छोड़ दो|

हम कल्कि ज्ञान सागर के संदेशानुसार सम्पूर्ण मानव जगत को बता देना चाहते है, कालदोष के कारण अज्ञानतावश मानव जिस परम दिव्य महाशक्ति को बाहर ढूंढ रहा है, वो दिव्य महाशक्ति हर मनुष्य के हृदय में आत्मस्वरूपता में ज्ञान व शक्ति स्वरूप विधमान है| मनुष्य स्वयं योग और ध्यान के माध्यम से अपने विराट आत्मस्वरूप को जानकर कर्मभूमि पर अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है| कर्मभूमि पर हर कर्मयोगी राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, कृष्ण, कबीर, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद की तरह विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनकर मानव जगत के बीच जन-कल्याण के कार्य करते हुए, अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है|

ज्ञात रहे सुंदर सृष्टि के रचियता, सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी परम माता-पिता परमात्मा परब्रह्म सगुण-साकार होकर भी निराकार रहते हुए, सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीव-जीवात्माओ के जन्मदाता-पालनहार बने हुए है| उस परम हितेषी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सगुण परब्रह्म के सत्यस्वरूप से हम सम्पूर्ण मानव जगत को अवगत करा देना चाहते है| एक ही सगुण परब्रह्म ने सृष्टि के विस्तार के लिए, सृष्टि में अनेक प्रकार के जीव-जीवात्माओ के मायावी नश्वर परिवर्तनशील रूप धारण किये हुए है|

सृष्टि के सभी जीव एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी परिवर्तनशील नश्वर रूप है| सृष्टि में सभी देवी-देवता व मानव का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है, क्योकि ये सभी मायावी रूप सगुण परब्रह्म के ही है| जिस प्रकार सनातन धर्म में मान्यता है, कर्मभूमि पर हरि विष्णु के 24 अवतार होते है, अतः हरि विष्णु एक होकर भी अनेक रूप में अवतार धारण करते है, तो भला एक विष्णु को छोड़कर उसके अनेक रूप की पूजा करने से मानव जीवन कैसे सार्थक हो सकता है| पूजा करनी है तो राम कृष्ण की नही उसकी करो जिसकी राम और कृष्ण किया करते थे और कर्मयोगी बनना है तो राम-कृष्ण की तरह बनो| एक को जानों एक को मानों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओ| 

ज्ञात रहे जो शिव है वही विष्णु है, जो विष्णु है वही राम है और जो राम है वही कृष्ण है, जो कृष्ण है वही शिव है| कर्मभूमि पर सभी निष्काम कर्मयोगी मायावी भौतिक शरीर के रूप में अलग-अलग हो सकते है, किन्तु सभी निष्काम कर्मयोगी के भीतर अवतार स्वरूप प्राकट्य अविनाशी सगुण परब्रह्म शिव-शक्ति का ही होता है| जैसे हरि विष्णु एक होकर भी अनेक रूप में अवतार लेते है| लक्ष्मी-विष्णु, सीता-राम, राधा-कृष्ण और सम्पूर्ण सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव अविनाशी सगुण परब्रह्म शिव-शक्ति के ही मायावी रूप है| कर्मभूमि पर सगुण जीवात्मस्वरूप में मानव-मात्र सगुण परब्रह्म शिव-शक्ति का अवतार है, किन्तु कर्मयोगी मायावी सृष्टि में भौतिक दृष्टि के कारण भ्रमित होकर अपने विराट आत्मस्वरूप को नहीं जान पाता है|

कर्मभूमि पर सगुण परब्रह्म शिव-शक्ति का अवतार स्वरूप प्राकट्य मानव निर्मित किसी गाँव, शहर, प्रान्त और देश में नहीं, बल्कि किसी निष्काम कर्मयोगी के तन के भीतर होता है| अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सुन्दर सृष्टि के रचियता, सम्पूर्ण मानव जगत के जन्मदाता, पालनहार कर्मभूमि पर अवतार स्वरूप अवतरित होने के लिए निष्काम कर्मयोगी के तन का सहारा लेते है, इस क्रिया को परकाय प्रवेश भी कहते है| अतः अवतार का जन्म-मरण नहीं किसी निष्काम कर्मयोगी के जीवात्मा के भीतर अवतरण होता है|

अवतार व ईश्वर दोनों अजन्मे है, दोनों का प्राकट्य कर्मभूमि पर निष्काम कर्मयोगी के तन भीतर होता है, सगुण-निर्गुण दोनों दिव्य-महाशक्ति कर्मभूमि पर निराकार रहकर धर्म की स्थापना व प्रभावना के कार्य करते है| निष्काम कर्मयोगी का तन एक रथ के समान है जिस पर अर्जुन स्वरूप कर्मयोगी सगुण परमात्मा परब्रह्म जीवात्मस्वरूप में कर्म करने के लिए सवार है और अर्जुन को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए कृष्ण स्वरूप निर्गुण परमात्मा परमब्रह्म आत्मस्वरूपता में अर्जुन के रथ के सारथी बनकर अर्जुन को कर्म करने का ज्ञान देते है| 

कर्मभूमि पर अवतार व ईश्वर का जन्म-मरण नहीं किसी निष्काम कर्मयोगी के भीतर ज्ञान व आत्मशक्ति स्वरूप अवतरण होता है| कर्मभूमि पर निर्गुण परमब्रह्म निष्काम कर्मयोगी के भीतर अपने स्वरूप को रचते है, जब निर्गुण व सगुण दोनों एकाकार हो जाते है, तब निष्काम कर्मयोगी के भीतर आत्मा व जीवात्मा का भेद मिट जाता है, इसी को ईश्वर का विराट स्वरूप कहते है, जिसके द्वारा कर्मभूमि पर पुनः धर्म की स्थापना व प्रभावना कराई जाती है|

कर्मभूमि पर जब किसी निष्काम कर्मयोगी के जीवात्मा के भीतर सगुण परब्रह्म का प्राकट्य हो जाता है, तो उसी कर्मयोगी की निर्गुण आत्मा के भीतर निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञान एवं आत्मशक्ति स्वरूप अवतरण हो जाता है| सगुण परब्रह्म को हम ईश्वर का सगुण स्वरूप ईश्वर का अवतार कह सकते है और निर्गुण परमब्रह्म को ईश्वर कह सकते है| इस प्रकार निराकार ईश्वर कर्मभूमि पर निराकार रहकर धर्म की स्थापना व प्रभावना के कार्य करते है| तो भला कर्मयोगी का नश्वर तन अवतार व ईश्वर कैसे बन सकता है?

मानव जीवन कर्म प्रधान है, जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है, मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है, तो भला धर्म के नाम पर कर्मयोगी के नश्वर तन को अवतार व ईश्वर मानकर, नश्वर तन की मुर्तिया बनाकर, नश्वरता की पूजा करने से मानव जीवन कैसे सार्थक हो सकता है? अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान के अभाव में कर्मभूमि पर धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के जाति-संप्रदाय व धार्मिक स्थल बन जाने के कारण सम्पूर्ण मानव जगत के लोग आपस में लड़ रहे है, जिसके कारण कर्मभूमि पर धर्म के प्रति ग्लानि बढने लगी है|

आज के विकास के युग में सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने के ज्ञान की जरूरत है, ईश्वर और अवतार के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थ, जाति-संप्रदाय बनाकर आपस में लड़ने की नहीं| मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है| मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव रूपी भौतिक शरीर के रूप में अवतार अनेक हो सकते है, किन्तु सभी अवतारो के भौतिक शरीर के भीतर जीवात्मा में अवतार स्वरूप प्राकट्य सगुण परब्रह्म काआत्मा के भीतर ज्ञान एवं आत्मशक्ति स्वरूप प्राकट्य निर्गुण परमब्रह्म का होता है|

कर्मभूमि पर युगानुसार जब किसी निष्काम कर्मयोगी के जीवात्मा के भीतर सगुण परब्रह्म का अवतार स्वरूप प्राकट्य हो जाता है, उसके बाद परब्रह्म स्वरूप निष्काम कर्मयोगी मनुष्यरूपी जीवात्मा की आत्मा के भीतर निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञान एवं आत्मशक्ति स्वरूप अवतरण होता है| निर्गुण परमब्रह्म परकाय प्रवेश करने के बाद उस मानव तन के भीतर अपने स्वरूप को रचते है| कर्मभूमि पर निष्काम कर्मयोगी के भीतर जब आत्मा व जीवात्मा एकाकार हो जाते है, इसके बाद मानव नश्वर तन रूपी मैं से मुक्त हो जाता है| तो भला उस मानव का नश्वर तन भगवान कैसे बन सकता है? निराकार मनुष्यरूपी जीवात्मा का कर्मयोगी के रूप में कर्मभूमि पर मानव के नश्वर भौतिक शरीर के भीतर अवतरण होता है जन्म-मरण नहीं, तो भला कर्मभूमि पर अवतरण होने वाले निराकार कर्मयोगी जीवात्मा के लिए कोई स्थान उसकी जन्म भूमि कैसे बन सकती है?

शिव स्वरूप निष्काम कर्मयोगी राम की जन्मभूमि अयोध्या शहर नहीं, बल्कि पूरी कर्मभूमि राम की जन्मभूमि है| क्योंकि कर्मभूमि पर गाँव-शहर, प्रान्त-देश मानव द्वारा बनाए गये है प्रकृति और परमात्मा द्वारा नहीं| कर्मभूमि पर ईश्वर का अवतरण सम्पूर्ण कर्मभूमि पर कर्म करने वाले मनुष्यरूपी जीवात्माओं को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए होता है, किसी गाँव-शहर, प्रान्त-देश, जाति-संप्रदाय विशेष के लिए नहीं| राम ने सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ज्ञान दिया था| अतः निष्काम कर्मयोगी राम रूपी मनुष्यरूपी जीवात्मा का अवतरण कर्मभूमि पर हुआ था अयोध्या में नहीं| अतः कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए अयोध्या जैसी विख्यात धर्म नगरी में मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे की नहीं विश्व मानव धर्म गुरुकुल की जरूरत है|

आज के विकास के युग में अपने बिखरे हुए विश्व मानव परिवार को पुनः जोड़ने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों के ह्रदय में धार्मिक एकता, कौमी एकता जागृत करने के लिए, भारत को पुनः विश्व धर्म गुरु बनाने के लिए, सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए भारत की पावन भूमि पर विश्व धर्म गुरुकुल बनाने की जरूरत है| जहां से सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को कर्म करने का ईश्वरीय आध्यात्मिक ज्ञान दिया जा सके|

ज्ञात रहे सम्पूर्ण मानव जगत के लोग असत्य का त्यागकर, कलयुग को सतयुग में परिणित कर सकते है, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन कर अपनी कर्मभूमि को अविनाशी स्वर्ग बना सकते है| ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है निर्गुण व सगुण, मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है और ईश्वर मानव के भीतर निर्गुण आत्मस्वरूपसगुण जीवात्मस्वरूप दोनों रूप में विद्यमान है, ईश्वर मानव को मानव के भीतर ह्रदय में मिल सकता है, बाहर धार्मिक स्थलों में कहीं भी नहीं| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय सन्देश-

 न मंदिर में, न मस्जिद में, नहीं गिरजा गुरुद्वारे में|
न तीर्थों में, न मठो में, नहीं कमल न काबे में|||
न पत्थर में, न पानी में, नहीं धरती के कण-कण में |
आत्मस्वरूप तुम बन जाओ, देख लो मुझको जन-जन में||

अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार एक निराकार परम दिव्य महाशक्ति निर्गुण परमब्रह्म की इच्छा शक्ति से विशाल ब्रह्माण्ड की उत्पति होकर उनका सत-असत रूपी मायावी जीवात्मस्वरूप का प्राकट्य हुआ, जिसे सनातन धर्म में आध्यात्मिक ज्ञानानुसार सगुण परब्रह्म माना गया| उसी सगुण परब्रह्म को मानव जगत के लोग शिव-शक्ति, आदम-हव्वा, आदम-ईव के नाम से जानते है| अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सगुण परब्रह्म द्वारा सुंदर सृष्टि का सृजन और विस्तार हुआ| सृष्टि में 84 लाख योनियों के जीव-जीवात्मा एक ही सगुण परब्रह्म के अनेक मायावी रूप है, जिनमे मानव सगुण परब्रह्म की सर्वश्रेष्ठ कृति, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है|

सम्पूर्ण सृष्टि में मानव ही एक ऐसा प्राणी है, जो अपने मन और बुद्धि द्वारा सोच समझकर कर्म कर सकता है एवं अपने मन की बात दूसरों के सामने बोलकर व्यक्त भी कर सकता है| आध्यात्मिक ज्ञानानुसार अर्द्धनारीश्वर स्वरूप परब्रह्म ही सम्पूर्ण सृष्टि के जन्मदाता, पालनहार है, अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सगुण परब्रह्म को अपना परम माता-पिता परमात्मा मान सकते है, सम्पूर्ण मानव जगत के लोग सगुण परब्रह्म की संतान है, अजन्मे निर्गुण अल्लाह-ईश्वर की नहीं| ज्ञात रहे निराकार, निर्गुण अल्लाह-ईश्वर, अनादी, अजन्मा, अजर-अमर, अविनाशी है, न तो वो किसी की संतान है और नहीं उनकी कोई संतान है| हम सभी मनुष्य परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म की संतान है, इसीलिए कर्मभूमि पर अवतरित होने वाले सभी मनुष्यो को ईश्वर स्वरूप नहीं परमात्मा स्वरूप कहा जाता है|

किसी भी मनुष्य को निराकार अल्लाह-ईश्वर स्वरूप नहीं कहा जाता और नहीं अल्लाह-ईश्वर को पिता माना जाता है| अद्धभूत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार देव योनि से मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित हुए सत-असत रूपी सगुण परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मा को पुनः निर्गुण विराट आत्मस्वरूप बनाने के लिए सगुण परब्रह्म द्वारा कर्मभूमि का सृजन हुआ है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर देह में रहकर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप बनकर भौतिक शरीर रूपी मै से मुक्त हो जाने को ही जन्म-मरण से मुक्त्ति और मोक्ष कहा गया है|

ज्ञात रहे एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति जो परम सत्य परमब्रह्म निर्गुण स्वरूप में एक है वही सगुण मायावी स्वरूप में एक होकर भी सृष्टि के विस्तार के लिए अनेक जीव-जीवात्मा के रूप धारणा लिए हुए है| अतः सृष्टि में सिर्फ मानव ही नहीं सृष्टि का जीव-मात्र परमात्मा सगुण परब्रह्म स्वरूप है, जिसमे मानव परमात्मा स्वरूप नही परमात्मा का ही रूप है| देवलोक में विधमान सगुण रब्रह्म स्वरूप देवी-देवताओ को पुनः निर्गुण परमब्रह्म स्वरूप बनाने के लिए ही कर्मभूमि का सृजन हुआ है, जिस पर देवी-देवताओ का मनुष्य रूपी जीवात्मा के रूप में कर्मभूमि पर अपना आत्मकल्याण करने के लिए प्रकृति के पंच तत्वों से बने मनुष्यरूपी भौतिक शरीर के भीतर अवतरण होता है, जन्म-मरण नही|

कर्मभूमि पर सम्पूर्ण मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देने के लिए, सर्वप्रथम कर्मभूमि पर किसी निष्काम कर्मयोगी के भीतर जीवात्मा में सगुण परब्रह्म का अवतार स्वरूप प्राकट्य होता है| कर्मभूमि पर सगुण परब्रह्म का अवतार स्वरूप प्राकट्य होने के बाद सगुण परब्रह्म स्वरूप मनुष्यरूपी जीवात्मा की भव्य आत्मा के भीतर निर्गुण परमब्रह्म का ज्ञानस्वरूप अवतरण होता है| अतः मानव जगत के लोग सगुण परब्रह्म को कर्म करने वाला अवतार एवं निर्गुण परमब्रह्म को कर्म करने का ज्ञान देने वाला ईश्वर मान सकते है|

ज्ञात रहे परब्रह्म और परमब्रह्म, आत्मा व जीवात्मा निराकार है, मानव उन्हें भौतिक दृष्टि से नही देख सकता, क्योंकि देवत्व व दिव्य दोनों निराकार दिव्य महाशक्ति का कर्मभूमि पर किसी निष्काम कर्मयोगी के भीतर अवतरण होता है, जन्म-मरण नहीं | कर्मभूमि पर मानव जगत को परमब्रह्म कर्म करने का ज्ञान तो प्रदान करा सकते है किन्तु किसी भी मनुष्य से निर्धारित कर्म नहीं करा सकते, क्योंकि अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार मानव जीवन कर्म प्रधान है जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है, कर्मभूमि पर कर्मयोगी कर्म करने में स्वतंत्र है कर्मफल पाने में नहीं|

आज मानव जगत के लोग ईश्वर को मानते जरुर है, किन्तु ईश्वर की नहीं मानते| धर्म के नाम पर बड़े-बड़े धार्मिक अनुष्ठान भी होते है, किन्तु ईश्वरीय ज्ञान को कोई बिरला ही ग्रहण कर पाता है| सम्पूर्ण मानव जगत के बीच अज्ञानतावश ईश्वर, अवतार व धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के धार्मिक स्थल, धर्मग्रंथ, जाति, पंत, संत, संप्रदाय बन चुके है, जिसके कारण विश्व मानव परिवार टूटकर बिखर चूका है| आज सम्पूर्ण मानव जगत के लोग धर्म और ईश्वर के नाम पर आपस मे लड़ने लगे है, जबकी धर्म नफरत नहीं प्रेम से मिलकर रहना सिखाता है| हम सब एक है सबका स्वामी एक जियो और जीने दो…

कबीरा कुआ एक है, पानी भरे अनेक|
घड़े-घड़े का भेद है, पानी सब में एक||

हम इंसान होकर भी मंदिर और मस्जिद के लिए लड़ बैठे|
अरे हमसे तो परिंदे ही अच्छे, कभी मंदिर तो कभी मस्जिद पर जा बेठे||

ज्ञात रहे एक निराकार परम गुरुवर परमब्रह्म ही कर्मभूमि पर युगानुसार परब्रह्म स्वरूप निष्काम कर्मयोगी मनुष्य रूपी जीवात्माओं में अवतरित होकर मानव जगत को कर्म करने का ज्ञान देते है, किन्तु मानव जगत के लोगों ने अज्ञानतावश अवतारो के नाम पर नए-नए धर्म संप्रदाय स्थापित कर अनेक प्रकार के धर्म ग्रंथ और धार्मिक स्थल बनाकर आपस में लड़ रहे है| जबकी उस निराकार ने अपने नाम पर कभी कोई धार्मिक स्थल बनाने का संदेश नहीं दिया|

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञान के अभाव में सनातन धर्म के अनुयायी भक्ति-मार्ग में एक अविनाशी सगुण रब्रह्म की अनेक प्रकार के देवी-देवताओ के रूप में ईश्वर मानकर पूजा करने लगे है| इतना ही नहीं कर्मभूमि पर कर्म करने का ज्ञान देने वाले निष्काम कर्मयोगी के नश्वर तन को भी ईश्वर मानकर पूजने लगे है| गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है अनेक प्रकार के देवी-देवताओ की पूजा करना और कराना मूढ़ बुद्धि के लोगो की देन है|

कर्मभूमि पर इस्लाम धर्म में शिया-सुन्नी के नाम पर मस्जिदे अलग-अलग बन गयी, गुरुद्वारा रूपी ज्ञान के मंदिर को सिर्फ सीखो के लिए मान लिया गया और विश्व में सबसे ज्यादा माने जाने वाला ईसाई धर्म का प्रार्थना स्थल दूसरे धर्म-संप्रदाय के लोगों के लिए नफरत बन गया| जबकी सभी धर्मगुरुओ ने समान रूप से सत्कर्म और सेवा को ही मानव धर्म बताया है| अल्लाह, ईश्वर, प्रभु, परमेश्वर एक ही निराकार परमब्रह्म के नाम है| सम्पूर्ण मानव जगत के नाम ईश्वरीय सन्देश- निराकार को कोई आकर न दो, अनामी को कोई नाम न दो, हे मानव जगत के लोगों मैं विराट आत्मस्वरूप निराकार अजन्मा हूँ, मानव-मात्र के भीतर आत्मस्वरूप है निवास मेरा, फिर भी कर्मभूमि पर क्यों तुमने मेरे नाम पर मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा बना दिया?   

                      सनातनियों के मन में आया, तो मुझे मंदिर बना दिया|                                         मुसलमानों की जिद्द ने, मुझे मस्जिद बना दिया|                                         सिखो ने मुझे वाहे गुरु मानकर, मेरा गुरुद्वारा बना दिया|                   ईसाईयों का गिरजाघर, क्यों किसी के लिए नफरत बन गया|

ज्ञात रहे कर्मभूमि पर जिस कर्मयोगी ने अपने भीतर निर्गुण आत्मा सगुण जीवात्मा के भेद को जाना उसने सबकुछ जान लिया, कर्मभूमि पर उसका मानव जीवन सार्थक हो गया| अब हम सम्पूर्ण मानव जगत को कल्कि ज्ञान सागर के संदेशानुसार बताना चाहेंगे कि मनुष्य रूपी जीवात्मा को अपना आत्मकल्याण करने के लिए, देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित होना पड़ता है| कर्मभूमि पर जीवात्मा को अवतरित होने के लिए प्रकृति के पंचतत्वो से बना भौतिक शरीर धारण करना पड़ता है| मानव रूपी इस भौतिक शरीर को मनुष्य रूपी जीवात्मा की सवारी कह सकते है, जो मनुष्य रूपी जीवात्मा के लिए एक रथ के समान है, जिस पर मनुष्य रूपी जीवात्मा सवार होकर अपने मन और बुद्धि के अनुसार अपने जीवनयापन आत्मकल्याण के लिए कर्म करता है,सलिए मनुष्य रूपी जीवात्माओं को कर्मभूमि पर कर्मयोगी भी कहा जाता है|

ज्ञात रहे कर्मभूमि पर सगुण मनुष्य रूपी जीवात्मा निराकार रहकर कर्म करता है और उसके भीतर विद्यमान निर्गुण आत्मा मनुष्य को कर्म करने का ज्ञान देती है, किन्तु कालदोष के कारण मानव अपने नश्वर भौतिक शरीर को ही अपना सत्यस्वरूप मानकर जीवनभर नश्वर शरीर के लिए कर्म करता रहता है और कर्म करने का ज्ञान देने वाले निराकार आत्मस्वरूप  परमब्रह्म को भी अपने समान नश्वर शरीर मानकर उसकी मुर्तिया बनाकर नश्वरता की पूजा करता है| ज्ञात रहे अजन्मे का कभी जन्म नही होता, निराकार का कोई आकर नहीं होता और जिसका कोई आकर नही होता, उसका कोई नाम नहीं होता| वो दिव्य महाशक्ति अनामी होता है नाम तो नश्वर भौतिक शरीर का होता है| निराकार कभी साकार प्रकट नहीं होता उस दिव्य महाशक्ति का कर्मभूमि पर किसी निष्काम कर्मयोगी के भीतर अवतरण होता है| 

ज्ञात रहे ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है जो निर्गुण स्वरूप में परम सत्य अजन्मा है वहीं सत-असत सगुण स्वरूप में एक होकर भी सृष्टि के विस्तार के लिए अनेक प्रकार के जीव-जीवात्मा के रूप धारण किये हुए है| अवतार सिर्फ एक ही है वो है परब्रह्म और उस परब्रह्म रूपी अवतार के कर्मभूमि पर भिन्न-भिन्न रूप अनेक हो सकते है, उन सभी रूपों में ज्ञानस्वरूप अवतरण सिर्फ एक निर्गुण रमब्रह्म का ही होता है|

सनातन धर्म के शास्त्रो के अनुसार 24 अवतार भगवान विष्णु के ही होते है और सभी अवतारों के भीतर निर्गुण परमब्रह्म ज्ञानस्वरूप अवतरित होकर कर्मभूमि पर कर्मयोगियों को कर्म करने का ज्ञान देते है| अतः युगानुसार प्राकट्य होने वाले परब्रह्म स्वरूप विष्णु रूपी निष्काम कर्मयोगी को युगावतार, अंशावतार, पूर्णावतार के रूप में जाना जाता है| राम, रहीम, ईसा, गुरुनानक, बोद्ध, महावीर, मोहम्मद, कृष्ण, कबीर ये सभी नश्वर भौतिक शरीर के नाम हो सकते है, निराकार ईश्वर व अवतार के नहीं| 

कल्कि ज्ञान सागर के अनुसार सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को भक्ति-मार्ग में कर्मभूमि पर अवतार स्वरूप प्राकट्य होने वाले सगुण परब्रह्म के प्रतिक शिवलिंग की पूजा करना चाहिए एवं ज्ञान-मार्ग में आत्मज्ञानी बनने के लिए अपने भीतर विद्यमान आत्मस्वरूप में विद्यमान निर्गुण परमब्रह्म की साधना करना चाहिए, जिससे कर्मभूमि पर मानव-मात्र अपना मानव जीवन सार्थक बना सकता है|

ज्ञात रहे मनुष्य की अज्ञानतावश ही धरती पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ती है और धरती नरक स्वरूप बन जाती है, पाप के कारण ही धरती पर महाविनाश होते है विकास में हजारो वर्ष लग जाते है और विनाश के लिए कुछ ही पल काफी है| धरती को महाविनाश से अल्लाह-ईश्वर नहीं, मनुष्यों के सत्कर्म ही बचा सकते है| आओ आप और हम मिलकर अल्लाह-ईश्वर द्वारा कल्कि ज्ञान सागर मे बताए गये मार्ग पर चलकर अपनी धरती माता को महाविनाश से बचाकर अविनाशी स्वर्ग बनाते है| कर्मभूमि पर कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए, कर्मभूमि पर सतयुगी दुनिया का सृजन करने के लिए सम्पूर्ण मानव जगत के लोगों को मिलकर, युगानुसार कर्मभूमि पर सभी धार्मिक स्थलों को गुरुकुल व सेवा आश्रम में परिणित करना होगा- 

नहीं मंदिर में पत्थर के सनम होते, नहीं मस्जिद में खुदा होता|
न गिरजा बना होता घर प्रभु का, नही वाहे गुरु गुरुद्वारे में होते|
न निराकार का कोई आकार होता, नहीं अनामी का कोई नाम होता|
हमी से बना है ये सारा तमाशा, वरना वो कभी हम से जुदा ना होता| 

 जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते

 

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