अपना आत्मकल्याण करना चाहते हो तो विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनो |

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के सभी देवी-देवता व मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है| कर्मभूमि पर मानव जीवन कर्म प्रधान है, मानव को उसके कर्मो के अनुसार जीवन में दुःख सुख मिलते है| मानव कर्मभूमि पर विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी मतलब अकर्मी बनकर अपना आत्मकल्याण कर सकता है| मानव विराट आत्मस्वरूपता में अकर्मी सतलोक में बिना कोई भी कर्म किये शाश्वत सुख पा सकता है, इसलिए मनुष्य योनी को देव योनी से श्रेष्ठ माना गया है| आत्मज्ञानी बनों अपना मानव जीवन सार्थक बनाओं| 

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