अगर आप चाहते है की सब लोग आपका सम्मान करे और आपको प्यार करे तो पहले इसकी शुरुआत आपको स्वयं से करनी होगी….

||कल्कि ज्ञान सागर के माध्यम से ईश्वरीय संदेश||

                        अगर आप चाहते है की सब लोग आपका सम्मान करे और आपको प्यार करे तो                                   सबसे पहले इसकी शुरुआत आपको स्वयं से करनी होगी आप सभी को सम्मान देगे और प्यार करेंगे तो        बदले में आप के लिए भी वही लौट कर आएगा जो आपने दूसरों को दिया है|

 

अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार प्रकृति का नियम है जैसी करनी वैसी भरनी कर्मफल का अटल सिद्धांत है आप जो दूसरों को देते है वही सौगुना बढ़कर आपके जीवन में वापस लौटकर आता है, अतः मनुष्यो के पूर्व कर्मो के अनुसार ही मनुष्य को दुख-सुख प्रदान करने के लिए अन्य मनुष्य रूपी जीवात्मा वर्तमान जीवन में निमित्त बनकर माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, बेटा, बेटी, प्रेमी, प्रेमिका, मित्र, शत्रु, और पड़ोसी बनकर आते है कोई खुशी देते है तो कोई दुखी कर देते है| ज्ञात रहे जो मनुष्यरूपी जीवात्मा आपके जीवन मे निमित्त बनकर आती है उन सभी जीवात्माओं का आपसे पिछले भव के कर्मो के अनुसार कुछ न कुछ लेना देना होता है कोई बेटा-बेटी, पत्नी, प्रेमिका बनकर दर्द दे जाते है तो कोई अंजान इंसान भी मसीहा बनकर आपके दुख दूर कर जाता है| आपके वर्तमान जीवन में जो मनुष्यरूपी जीवात्माएं आपके आस पास है या आपके संपर्क में आती है वो पिछले भव का या तो आपके पास कुछ लेने आती है या आपको कुछ देने आती है| आप भविष्य में अपने लिए क्या चाहते है ये आपके अपने हाथ में है आपके अपने खुशहाल जीवन की चाबी भी आप ही के हाथ में है ईश्वर के हाथ में नहीं| ईश्वर ने आपके जीवन की चाबी आपके हाथों में दे दी है इसीलिए कर्मफल के अटल सिद्धांतानुसार कर्मभूमि पर कर्मयोगी स्वयं ही स्वयं का भाग्य विधाता है, जो स्वयं ही अपने कर्मो द्वारा अपना भाग्य लिखता है अतः कर्मभूमि पर कर्मयोगी स्वयं ही कर्ता, भरता, हरता है| ज्ञात रहे मानव जगत को ईश्वर का नाम जपने की जरूरत नहीं है बल्कि ईश्वर द्वारा बताए गए कर्म करने के ज्ञान पर चलने की जरूरत है| अतः कर्मभूमि पर जीव मात्र के प्रति दया, प्रेम, सेवा, भाव रखते हुए ज्योति से ज्योति जलाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो सबकी सेवा सबसे प्यार ही सुखी जीवन का आधार स्तम्भ है|

ज्ञात रहे कर्मभूमि पर विचरण करने वाले सभी कर्मयोगी मनुष्यरूपी जीवात्मा के रूप में  एक ही परम माता-पिता परमात्मा सगुण परब्रह्म के ही अनेक रूप है जिन्हें हम एक ही परमात्मा परब्रह्म की संतान कह सकते है| हम एक धरती के वासी है…हम सब एक है…सबका स्वामी एक| किन्तु ज्ञात रहे दृष्टि ही सृष्टि है इस संसार में हमें नश्वर भौतिक शरीर की मायावी दृष्टि से जो भी कुछ दिखाई दे रहा है वो सब नजरों का धोखा है किन्तु नजरें देकर नजारे दिखने वाला कभी किसी को नजर नहीं आता|

सृष्टि के अद्भुत रहस्यमय खेल में इस कर्मभूमि पर कर्मयोगी का कड़ा इम्तिहान लेने के लिए प्रभु से प्रकट हुई महामाया ने अपना माया जाल फैला रखा है| कर्मयोगी को कर्मभूमि पर जो भी कुछ दिखाई दे रहा है वो सब नजरों का धोखा है, मोहमाया का जाल है| मनुष्य जिस पल कर्मभूमि पर जन्म लेता है उसी पल उसके साथ माता, पिता, दादा, दादी, भूवा, फूफा, चाचा, चाची, नाना, नानी, मामा, मामी, मोसा, मोसी, भाई, बहन, जैसे सारे संसारी भौतिक शरीर के रिश्तो के साथ-साथ धर्म, जाति, पंत संप्रदाय जैसी सामाजिक धार्मिक परंपराए और रूढ़िवादिया भी जुड़ जाती है जबकी उस मनुष्य रूपी जीवात्मा को जन्म के समय इन सबका ज्ञान ही नहीं होता| किन्तु एक रिश्ता रहस्यमय है जो प्राकृतिक रिश्ता है पति-पत्नी का वो अर्धनारीश्वर स्वरूप है, यह रिश्ता युवावस्था में जुड़ता है, जीवन की आखरी श्वास तक निभाया जाता है| यही एक रिश्ता मानव जीवन में महत्वपूर्ण रिश्ता है, जिसके कारण सुंदर सृष्टि का सृजन होकर सृष्टि का विस्तार हुआ है| कर्मयोगी कर्मभूमि पर महामाया की माया में कैद होने के बाद अज्ञानतावश अपने सत्य विराट आत्मस्वरूप को भूलकर जीवन भर अपने नश्वर भौतिक शरीर के लिए कर्म करता रहता है जिसके कारण उस मनुष्यरूपी जीवात्मा का कर्मभूमि पर निरंतर तन परिवर्त होता रहता है, जब कर्मयोगी कर्मभूमि पर जन्म लेता है तो उसके साथ महामाया के सारे नजारे जुड़ जाते है और तन परिवर्तन के साथ ही नश्वर संसार के सभी रिश्ते-नाते, घर-परिवार, धन-दौलत, जमीन-जायदाद सब कुछ एक पल में छुट जाते है| 

ज्ञात रहे अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार सृष्टि के रहस्यमय खेल में सगुण परब्रह्म स्वरूप जीवात्मा की भव्य निर्गुण आत्मा को देवलोक से कर्मभूमि पर अवतरित होकर कर्मभूमि पर अपने सगुण जीवात्मस्वरूप को त्यागकर सतलोक जाना होता है, क्योकि देवलोक से आत्मकल्याण नहीं हो सकता इसलिए देवी-देवता भी कर्मभूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते है| स्वयं से स्वयं तक जिंदगी एक सफ़र है जिंदगी के इस सफ़र में स्वयं ही स्वयं के हमसफ़र है| ज्ञात रहे मानव निर्गुण ईश्वर का सगुण स्वरूप है जिसके भीतर कर्मभूमि पर आत्मस्वरूपता में निर्गुण परमब्रह्म ही हमारा एक ही सच्चा हमसफर है| उस दिव्य महाशक्ति को आध्यात्मिक ज्ञानानुसार परम गुरुवर परमब्रह्म कहते है| जो कलयुग को सतयुग में परिणित करने के लिए वर्तमान में कल्कि ज्ञान सागर के रूप मे धरती पर ज्ञानस्वरूप अवतरित हो चुके है| ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मनुष्य रूपी जीवात्मा जब कभी अज्ञानतावश तामसिक कर्म करने लगता है तो उसके भीतर आत्मस्वरूपता में विद्यमान परम गुरुवर परमब्रह्म ही बार-बार उसे संकेत करते रहते है, उसे याद दिलाते रहते है की यह मानव जीवन को सार्थक बनाने का सत्यमार्ग नहीं है| परम गुरुवर परमब्रह्म हमें विदेही भाव में विराट आत्मस्वरूप निष्काम कर्मयोगी बनाकर मोहमाया रूपी इस संसार सागर से निकाल कर हमें हमारी मंजिल सतलोक तक पहुंचाना चाहते है| इसी क्रिया को जन्म-मरण से मुक्ति और मोक्ष कहा गया है| 

कर्मभूमि पर हम सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा सुंदर सृष्टि के रचियता सम्पूर्ण सृष्टि के सभी जीवात्माओं के स्वामी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सगुण परब्रह्म की संतान है, यानि सभी मनुष्य रूपी जीवात्मा एक ही परब्रह्म के अनेक रूप है अतः सभी मनुष्यों के जीवात्मस्वरूप में भौतिक शरीर भिन्न भिन्न हो सकते है अनेक हो सकते है किन्तु आत्मस्वरूपता में सभी मनुष्य एक समान है| ज्ञात रहे मनुष्यो के नश्वर शरीर को हम अपना जीवन साथी हमसफर इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि जन्म के साथ जुडने वालो का साथ मृत्यु के बाद छूट जाता है| ज्ञात रहे हमारी कर्मभूमि एक सराय एक धर्मशाला के समान है जिसमें हम सभी कर्मयोगी मनुष्यरूपी जीवात्मा निवास करते है और हम सभी मनुष्यरूपी जीवात्मा एक साथ रहते है इसलिए सम्पूर्ण मानव जगत को हमें अपना विश्व मानव परिवार मानना चाहिए यानि हमे अपने हृदय मे वसुधैवकुटुंबकु की भावना रखते हुए सभी मनुष्यो के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम अपने स्वयं के लिए चाहते है| ज्ञात रहे सबकी सेवा सबसे प्यार की भावना ही मानव को महामानव बना सकती है क्योंकि मनुष्य इस भावना में सभी जीवात्माओं को अपने समान समझने लगता है इसी को विराट आत्मस्वरूप कहते है| मानव के लिए कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा से बड़ा और कोई मानव धर्म नहीं है अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ज्ञानानुसार प्रकृति का नियम है जो आप दूसरों को दोगे वही आपके पास सौगुना लौट कर वापस आएगा जैसे हम खेती मे एक बीज डालते है और प्रकृति हमें उस एक बीज के बदले फसल के रूप अनेक अनेक गुना बड़ा कर देती है|

कल्कि ज्ञान सागर के संदेशानुसार हमसफर तो उसे कहते है जो हर घड़ी हर पल हमारे साथ रहे जन्म से पहले भी जन्म के बाद भी और मौत के बाद भी कभी एक पल के लिए भी हमारा साथ न छोड़े नहीं हमसे कभी जुदा हो वो आपका हमारा सम्पूर्ण मानव जगत का एक ही परम हितेषी हमसफर है और वो है परम गुरुवर परमब्रह्म जिसे मानव जगत के लोग अल्लाह, ईश्वर प्रभु, परमेश्वर, खुदा, गॉड, वाहेगुरु के नाम से पुकारते है| वही दिव्य शक्ति जो हमेशा हमारे हृदय में विधमान रहती है| हम अज्ञानतावश अपने भीतर हृदयस्त विद्यमान अपने परम गुरुवर परमब्रह्म का ध्यान नहीं करते, किन्तु  फिर भी वो हर पल हमारा ध्यान रखते है अतः सम्पूर्ण मानव जगत के लिए कल्कि ज्ञान सागर का संदेश है……

ईश्वर से ईश्वर तक हमारी जिंदगी एक सफर है|
जिंदगी के इस सफर में ईश्वर ही हम सफर है|
सृष्टि के इस संसार में कभी खुशी कभी गम |
नहीं कोई हमारा है, और नहीं किसी के हम |

अतः हम सम्पूर्ण मानव जगत से निवेदन करते है जो नश्वर है उसके लिए अपना अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ नहीं करे, एक को जाने एक को माने ईश्वर एक है उसके दो स्वरूप दो चरित्र है दोनों एक ही सिक्क्वे के दो पहलु है अतः कर्मभूमि पर मानव मात्र को सर्वप्रथम सुन्दर सृष्टि के रचियता, सृष्टि के सभी जीवो के जन्मदाता पालनहार परम माता-पिता परमात्मा को भक्ति मार्ग में नमन करते हुए अपने भीतर ह्रदयस्त विद्यमान अजर-अमर, अविनाशी निराकार निर्गुण परम गुरुवर परमब्रह्म की साधना करना चाहिए, तो आपका मानव जीवन सार्थक हो जायेगा| जय अहिंसा, ॐ विश्व शांति, सत्यमेव जयते|

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